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________________ वर्षासागर २९२] वह घो मिली धूल रसोई बनानेवाले वैयाकरणको सौंप दो। वैयाकरणने भी खबधव शम्बके और खिचड़ो। धूल डालनेके सब समाचार कह सुनाये तदनन्तर बैल घरानेवाले ज्योतिषीको बुलाया बैल तो उसका खो हो गया था वह खाली हाथ रोता आया और अन्धी चोपड़ी काणी लग्नको देखकर बैल हाँकनेका सब हाल कहा।। अब ये तीनों ही भूखसे व्याकुल हो रहे थे सो परस्पर विचार करने लगे कि अब क्या करना चाहिये। तब सबने सोचा कि अच्छा वैद्यजी महाराज फल, पत्र, कन्दमूल आदि कुछ तो शाक लागे सो उसीको स्वाकर आगे चलेंगे। इतने में वैद्य भी आ गया। बह शाक-भाजो लेने गया था और उस गांवमें बहुत अच्छे स्वादिष्ट । फल थे परन्तु यह वहींपर निघण्टु शास्त्रके इलोकोंके अनुसार सबके गुण, दोष विचार करने लगा। वह शाक | बाल का है। यह पिस करता है । यह कफ करता है । यह त्रिदोष करता है। यह रक्त विकारो है। यह अजीर्ण है। यह ज्वरातिसार करता है। यह श्वास बढ़ाता है । यह उदरविकार करता है यह छवि (वमन) करता है । यह सोथ शूल और कुष्ट करता है । इस प्रकार सब शाकोंमें वोष देखकर सबको छोड़ दिया। आगे चलकर नीमके पत्ते देखे उनमें कोई दोष दिखाई नहीं पड़ा । इसलिए उन्हींको लेकर आ पहुंचा। इसी प्रकार # आप लोगोंकी विद्वत्ता है। और सुनो...... ...."( यहाँ कुछ पाठ छूट गया है) जिन चैत्यालयके लिए अपनी ऋद्धि छोड़ो काय गुप्ति बिगाड़ी अपने त्यागका भंग किया। तथा रावणने भक्तिकरि तीर्थङ्कर प्रकृतिका बंध किया। विचार करने की बात है कि यदि इस समय कोई जिनधर्मका द्वेषी जिनबिबवा जिनमन्दिरका बिध्न करे वा प्रतिमाजीका भंग कर तब क्या क्रोधादिक क्रूरभाव धारण कर वा उसको बध बंधनाविके द्वारा पोड़ित । कर छुड़ावेंगे या नहीं ? ऐसी अवस्थामें यदि वह क्लेश अधिक बढ़ जाय, दोनों ओरकी अच्छी सामर्थ्य हो है और शस्त्रोंके द्वारा परस्पर मनुष्योंका घात भी हो जाय तथा ऐसा करनेसे बड़ी भारी हिंसा हो जाय तो देव, गुरु, धर्म, जिनबिम्ब, जिनागम आदि की रक्षा करनेके लिए ऊपर लिखे कार्य करने चाहिये या नहीं ? अथवा इन कार्योंमें महापाप समझ कर प्रतिमाजीका भंग और उससे होनेवाला महा अविनय होने देना चाहिये ? उनको । रक्षा नहीं करनी चाहिये ? क्या करना चाहिये सो मतलाओ ?
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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