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________________ सागर २०७] और सुनो एक क्षुल्लक ब्रह्मचारी विद्याधर था उसने निमित्तशानी अपने गुरुसे बाना कि हस्तिनापुरमें । सातसौ मुनियोंको घोर उपसर्ग हो रहा है, और उसको विष्णुकुमार मुनिराज दूर कर सकते हैं उस समय आषो रातका समय था। वह विद्याधर उसी समय मुनिराज विष्णुकुमारके समीप पहुंचा । विष्णुकुमारको विक्रिया ऋद्धि प्राप्त हुई थी। उस विद्याधरने मुनिराजसे प्रार्थना की कि महाराज हस्तिनापुरमें सातसौ महा॥ मुनियोंको घोर उपसर्ग हो रहा है । प्रातःकाल नरमेध यजको सिये ॐ सब गुनियोंको अग्निमें होम कर मारेंगे। आपको विक्रिया ऋद्धि प्राप्त है सो आप बचाइये। तब मुनिराजने पहले तो विक्रियाऋद्धिके प्राप्त होनेको परीक्षा को । फिर उसी समय अर्थात् आधी रातमें हो वे हस्तिनापुर आये। वहाँका पचनामका राजा उनका । भाई था सो उसको महलोंमें जाकर जगाया और उसको समना कर कहा कि "तू बड़ा दुष्ट है, पापी है, इस । राज्यमें था इस वंशमें कभी ऐसा नहीं हुआ जो आज हो रहा है" मुनिराजको बात सुनकर राजा पाने हाथ जोड़े नमस्कार किया और फिर निवेदन किया कि महाराज इसमें मेरा वश नहीं है । मैं तो बलि नामके मंत्रीको अपने वचनोंसे सात दिनका राज्य हार गया हूँ। अब यह उपसर्ग मुझसे दूर नहीं हो सकता आपसे ही दूर हो सकेगा। राजाकी यह बात सुनकर वे मनिराज वामनरूप बामणका रूप धारण कर राजा बलिके पास पहुंचे। राजाको आशीर्वाद दिया और तीन पेंट पथ्वी मांगो। राजा बलिने तीन पंड पृथ्वी समृल्प कर दी। तब उन मुनिराजने विकियाऋद्धिसे अपना शरीर बढ़ाया तथा एक पैर मेरु पर्वतपर रक्खा, दूसरा पैर मानुषोतर पर्वतपर रक्खा और तीसरा पैर कहीं रखनेकी जगह न रहने के कारण बलिको पोठपर रक्सा, इस प्रकार राजा बलिको वश कर बांध कर मुनिराजोंका वह घोर उपसर्ग दूर किया। उसी समय आकाशसे देवोंने उन मुनिराजके ऊपर पुष्पोंको वर्षा की, जय जय शब्द किया, अनेक प्रकारके वीणा आदि बाजे बजाकर विष्णुकुमारके । गुणोंको स्तुति को, स्तुतिके गोत गाये । इस प्रकार मुनिराज विष्णुकुमारने सातसौ मुनियोंकी रक्षा की। देखो धर्मको रक्षाके लिये मुनिराजने भी अपने त्यागेका भंग किया और वात्सत्य अंगका पालन कर। १. मुनिराज न तो ऋद्धियोंसे काम लेत है ओर न रात्रिगमन वा इस प्रकारका छल करते हैं। परन्तु विष्णुकुमारने किया सी केबल धर्मको रक्षाके लिए किया उसने आरम्भजानित थोड़ा-सा पाप हुआ परन्तु धर्मको रझा अत्यन्त अधिक हुई। सातसो मुनिराजकी रक्षा हुई और धर्मका महा उद्योत हुला मुनिराजको महापुण्यका बंध हुआ । इसीलिये देवोंने उसो समय पुष्प वृष्टि । कर उगको पूजा की। मुनिराज सब आरंभके त्यागो ये परन्तु थोड़ा-सा आरंभ उन्हें करना पड़ा था इसलिए उन्होंने उसका
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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