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________________ चर्चासागर २८५] Faisas मूलसंघसे विपरीत कथन किया था। केवली कबलाहार नहीं करते यह मूलसंघका सिद्धांत है परन्तु उन्होंने । इसमें शंका खड़ी कर दो कि केवलो भगवानको स्थिति आठ वर्ष कम एक करोड़ पूर्व तक होती है सो इतने दिन तक बिना कवलाहार किये यह औदारिक शरीर किस प्रकार टिक सकेगा । बस इसो शंकाको सामने रखकर उन्होंने केवलोके कवलाहारका निरूपण कर दिया । इसी प्रकार संशय मिथ्यात्वके उवयसे और भी कितनी ही विपरीत बातें पुष्ट की तथा इस प्रकार वे जिनवचनके विरोधी हए इसलिये जिनवधनों में शंका करना ॥ निःशंकित नामके सम्यग्दर्शनके अंगका घातक है। इस प्रकारको शंकाओं सहित सम्यग्दर्शनका श्रद्धान आप लोगोंके समान पुरुषों के ही होता है। और देखो श्री ऋषभदेवको दिव्यध्वनिमें धर्मका स्वरूप सुनकर तथा उसे अच्छी तरह जानकर भी उनके पोते मारीच आदि मिथ्यातियोंने जिन वचनोंमें शंका रक्खी थी और उस शंकाहोके कारण सांख्य, पातंजलि आदि शास्त्रोंकी रचना को थी तथा दंडी, संन्यासी, परमहंस आदि अनेक भेष धारण कर अनेक प्रकारको विपरीतता पुष्ट की थी। इसीलिये वे सब जिनवचन बाह्य अयवा जिनधर्मके बाहर समझे गये थे। इससे सिद्ध होता जो । जैन वचनोंमें वस्तुके स्वरूपमें संदेहयुक्त प्रवृत्ति करता है वह विपरीतता भी अवश्य करता है यह बात मिथ्या I नहीं है किन्तु सर्वथा सत्य है। कदाचित् यह कहो कि "हमें जिन वचनोंमें रंधमात्र भी शंका नहीं है परन्तु फल तो अपने भावोंके . आधीन है वैसे भाव भी तो होने चाहिये । बिना भावोंके केवल क्रिया करना सब व्यर्थ है। तो इसका सोधा। सा उत्तर यह है कि हम लोग तो बिना भावोंके करते हैं तथा आप लोग सब वैसे ही भावोंसे करते हो? आपके भाव बहुत निर्मल हैं। उनमें रंधमात्र भी संदेह वा शंका नहीं है। क्योंकि आप लोग शास्त्रोक्त विधिके । अनुसार पूजा, पाठ पढ़ते हो और उस, पूजा, पाठमें जो लिखा है जो मुखसे पढ़ते हो उसके अनुसार जो-जो मिल सकता है और बन सकता है वह सब ही करते हो ? उसमेंसे न कुछ घटाते हो? और न कुछ और हो । प्रकार करते हो ? जो कहते हो ? वही करते हो । देखो ! जो तुम नित्य पूजा पाठ पढ़ते हो ! शास्त्र बाँचते हो! । उसमें पुष्पमाला, पुष्पांजलि, नैवेद्य, दीप, फल जो-जो लिखा है सो चढ़ाते हो हो । कल्पवृक्षके पुष्प वा रत्नाविकके । बीपक तो हम तुमसे बन हो नहीं सकते। बाकी सब आप लोग करते हो ? इससे लोगों के भाव निर्मल मालूम। t e-Pactress २८
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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