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चर्चासागर [ २८३
करते हो। पूजा, पाठ आदि शास्त्री जी यह लिखा है कि अभिषेक, पूजा आदि करनेसे अनेक जन्मके महापाप मिट जाते हैं और महान् पुष्यकी प्राप्ति होती है सो मालूम नहीं होगी या नहीं ? अथवा यह लिखना सत्य है। वा असत्य ? पूजा- पाठकी जो यह फल-स्तुति ( स्वर्गादिक सुखोंके प्राप्त होनेकी महिमा ) बतलायी है सो ham of बढ़ानेके लिये ही है अथवा सत्य है ? किसी जगह लिखा भी है- "रोचनार्थं फलस्तुति:" अर्थात् किसी पदार्थकी महिमा उसकी ओर रुचि बढ़ानेके लिये हो की जातो । इस प्रकार आप लोगोंका पूजा-पाठ, अभिषेक आदि शंका सहित किया जाता है ।
जैसे किसी समय किसी सेठने एक वनपालको ( मालीको ) आकाशगामिनो विद्या सिद्ध करनेके लिए " णमो अरिहंताणं" इत्यादि मन्त्र दिया था । तथा उसकी विधि बतलायो यी कि किसी श्मशान भूमिमें बड़के Fast किसी ऊँची शाखाएँ एकसौ आठ लड़ीका एक वाभका छौंका लटकाना चाहिये। उसके नीचे तलवार, किरच आदि बड़े तेज खुले शस्त्र ऊपरकी ओर मुँह करके रख देना चाहिये । फिर उस छींके में बैठकर एकएक मन्त्रको पढ़कर छुरीसे एक-एक लड़ी काटते जाना चाहिये । इस प्रकार सब लड़ियों के कट जानेपर विद्या सिद्ध हो जाती है । वह वनपाल विद्या सिद्ध करनेको तो तैयार हुआ परन्तु उसका हृदय कुछ सशङ्कित भी हो गया। वह विधारने लगा कि यदि कवाचित् सेठकी कही हुई बात झूठी हो जाय और विद्या सिद्ध न हो तो फिर मेरा मरण ही हो जायगा। मुझे तो यह भी मालूम नहीं है कि यह सब सत्य है वा असत्य । इस मन्त्रसे और इस विधिसे विद्या सिद्ध होती है या नहीं ? इस प्रकार आप लोगोंके समान सशक्त होकर वह विचार कर ही रहा था कि इतनेमें एक अञ्जन नामका चोर वहाँपर भागता भागता आ निकला। आते हो उसने वनपालसे पूछा कि तू यह क्या कर रहा है? तब वनपालने कहा कि मैं सेठके दिये हुए मन्त्रको सिद्ध करने की चेष्टा कर रहा हूँ परन्तु साथमें मरनेकी शङ्का भी होती है तब उस अंजन चोरने उस विद्याको सब विधि पूछो तथा उस वनपालको छोकेसे उतार कर आप निःशङ्क होकर उसमें बैठ गया। उसने संशय, विपर्यय आदि सब दूर कर विधिके अनुसार मन्त्रपूर्वक सब लड़ियों काट डालों और उसी समय उसे विद्या सिद्ध हो गई। सवनन्तर वह अंजन चोर उस आकाशगामिनी विद्याके बलसे मेरुपर्वतपर विराजमान उस सेठके पास पहुँचा। वहाँ जाकर चैत्य वन्दना की, पूजा की और ऋद्धिचारी मुनिराजके समीप दोक्षा लेकर तपश्चरण कर
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