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बासागर
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"कषादिरोमहीनांगं श्मश्ररेखाविवर्जितम् । स्थितं प्रलंबितहस्तं श्रीवत्साढय दिगम्बरम्" ॥
६-चर्चा छठी प्रश्न-कोटिशिलासे एक करोड़ मुनिराज मोक्ष पधारे हैं । उस कोटिशिलाको नारायण उठाते हैं सो वह कोटिशिला किस जगह है ?
समाधान-वह कोटिशिला नाभिगिरि पर्वतके मस्तक पर है। वह एक योजन ऊँचो और आठ योजन । चौड़ी है । तथा अनेक मुनिराजोंका यह सिद्धस्थान है। ऐसी कोटिशिलाको हमारा नमस्कार हो। यही बात ॥ सोमसेनकृत पद्मपुराणमें बाईसवें अधिकारमें लिखो है--
"रावणेन पुरा पृष्टोऽनंतवीयों मुनीश्वरः। आत्मनो मरणं कस्य हस्ते देव ! भविष्यति ॥ १८ ॥ सेनोक्तं सिद्धशिलां यः उखरेत्स्वपराक्रमात् । स एव हन्यते त्वां हि चक्रण चामुना दृढम् ॥ १६ ॥ एतच्छु, स्वाह लक्ष्मीश उद्धरिष्यति नान्यथा । ततस्तेऽथ विमानस्थास्तां शिलां प्रति निर्गताः ॥ २० ॥ जांननदश्च सुग्रीवो नलनीलो विराधितः। इत्यादि वहवो वीरा रात्री प्राप्ताश्च गह्वरम् ।। २१ ।। नाभिगिरिशिरोदेशे शिला योजनमुस्थिता ।
अष्टयोजनविस्तीर्णा सिद्धस्थानं मुनीशिनाम् ॥ २२ ॥ १. प्रतिमा ऐसी होनी चाहिये जिसपर भौंह दाही, मछके बाल न हों खड्गासन हो, हाथ लटकते हों, श्रीवल्सका चिह्न हो और दिगम्बर हो।
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