SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बासागर ८] "कषादिरोमहीनांगं श्मश्ररेखाविवर्जितम् । स्थितं प्रलंबितहस्तं श्रीवत्साढय दिगम्बरम्" ॥ ६-चर्चा छठी प्रश्न-कोटिशिलासे एक करोड़ मुनिराज मोक्ष पधारे हैं । उस कोटिशिलाको नारायण उठाते हैं सो वह कोटिशिला किस जगह है ? समाधान-वह कोटिशिला नाभिगिरि पर्वतके मस्तक पर है। वह एक योजन ऊँचो और आठ योजन । चौड़ी है । तथा अनेक मुनिराजोंका यह सिद्धस्थान है। ऐसी कोटिशिलाको हमारा नमस्कार हो। यही बात ॥ सोमसेनकृत पद्मपुराणमें बाईसवें अधिकारमें लिखो है-- "रावणेन पुरा पृष्टोऽनंतवीयों मुनीश्वरः। आत्मनो मरणं कस्य हस्ते देव ! भविष्यति ॥ १८ ॥ सेनोक्तं सिद्धशिलां यः उखरेत्स्वपराक्रमात् । स एव हन्यते त्वां हि चक्रण चामुना दृढम् ॥ १६ ॥ एतच्छु, स्वाह लक्ष्मीश उद्धरिष्यति नान्यथा । ततस्तेऽथ विमानस्थास्तां शिलां प्रति निर्गताः ॥ २० ॥ जांननदश्च सुग्रीवो नलनीलो विराधितः। इत्यादि वहवो वीरा रात्री प्राप्ताश्च गह्वरम् ।। २१ ।। नाभिगिरिशिरोदेशे शिला योजनमुस्थिता । अष्टयोजनविस्तीर्णा सिद्धस्थानं मुनीशिनाम् ॥ २२ ॥ १. प्रतिमा ऐसी होनी चाहिये जिसपर भौंह दाही, मछके बाल न हों खड्गासन हो, हाथ लटकते हों, श्रीवल्सका चिह्न हो और दिगम्बर हो। [ ८ ]
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy