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________________ वर्षासागर [5] = तत्रावतीर्य ते सर्वैः सा शिला पूजिता परम् । गंधाक्षतादिभिः पुष्पैः सुरासुरैश्च सेविता " ॥ २३ ॥ इत्यादि और भी वर्णन है। जांबूनद आदि विद्याधर उसी रातको लक्ष्मणको विमानमें बिठाकर कोशलाके समीप ले गये थे। इससे सिद्ध होता है कि कोटिशिला नाभिगिरि नामक पर्वतके मस्तक पर ही है। कितने ही लोग कोटिशिलाको तारंगा आदि अन्य क्षेत्रस्थानोंमें मानते हैं सो भ्रम हैं । ७- चर्चा सातवीं प्रश्न - मुनिराज बिना पोछाके चले या नहीं ? समाधान --- यदि मुनिराज किसी जगह परवश होकर बिना मयूरपोछोके गमन करें तो फिर वे उसका प्रायविचस लेकर शुद्धि करते हैं। बिना पोछीके गमन करनेपर बिना प्रायश्चित्त लिये मुनिराज कभी नहीं रहते । बिना पीछोके गमन करनेका प्रत्यश्चित इस प्रकार है-यदि मुनिराज बिना पीछोके सात पेंड गमन करें तो एक कायोत्सर्ग धारण कर शुद्ध होवें । यदि एक कोस चलें तो एक उपवास कर शुद्ध होवें । यही बात चारित्रसार में लिखी है "सप्तपादेषु निःपिच्छः कायोत्सर्गाद्विशुद्धयति । गव्यूतिगमने शुद्धिमुपवासं समश्नुते ॥” कितने ही लोग मुनोश्वरोंका स्वरूप पोछी कमंडलुसे रहित मानते हैं परन्तु उनका यह मानना मिष्या है । जो मुनीश्वरोंका स्वरूप पोछी रहित मानते हैं वे जिनमतसे बाह्य हैं। ऐसे ही लोग जिनमार्गमें भे उत्पन्न करनेवाले हैं। यही बात नीतिसारमें लिखी है- * इन श्लोकोंका अभिप्राय यह है कि रावणने स्वामी अनंतवीर्यसे पूछा था कि मेरी मृत्यु किसके हाथसे होगी तब भगवान् ने कहा था कि जो कोटिशिलाको उठावेगा वही तुझे इसी चक्रले मारेगा। यह बात जांबूनद आदि विद्याधरोंने लक्ष्मणसे कहीं थो तथा वे विद्याधर लक्ष्मणको विमानमें बिठाकर नामिगिरि पर्वतपर कोटिशिला उठवानेको ले गये थे। वह बिला आठ योजन चौड़ी एक योजन ऊँची यो। उन विद्याधरोंने तथा लक्ष्मणने उस शिलाकी पूजा की थी । * अभिप्राय यह है अत्यन्त आवश्यकता पड़ने पर मुनिराज बिना पोछेके चल सकते हैं परन्तु उन्हें उसका प्रायश्चित्त अवश्य लेना पड़ता है। देखो 'प्रायश्चित्तसमुखय चूंलिका' पृष्ठ १६८ । २
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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