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चर्चासागर [७]
५-चर्चा पाँचवीं
प्रश्न - मुनिराज लोधकी विधि तो जानी परंतु तीर्थंकर भगवान् वीक्षासमय जो पचमुष्टी लॉच करते हैं सो किस प्रकार करते हैं ?
समाधान — तीर्थंकर भगवान् मुनियोंके समान लोच नहीं करते क्योंकि उनके दाढी मूंछ होते ही नहीं हैं | तीर्थंकर भगवान् तो सदा सोलह वर्ष की अवस्थाथाले पुरुषके समान ( विना दाढी मूंडके ) अपने रूपसे सुशोभित रहते हैं । इसलिये भगवान् जो पंचमुष्टि लोक करते हैं सो केवल शिरका हो पंच मूटियोंसे लोग करते हैं । यदि ऐसा नहीं माना जायगा तो मुनिराजके समान तीर्थंकरोंका केशलोच बन नहीं सकेगा, I क्योंकि उनके दाढी मूंछके केश लोच करने योग्य होते ही नहीं हैं फिर भला उनके लोचकी संभावना हो ही कैसे सकती है। लिखा भी है
“देवाविणारया वि य भोगभुवा चक्किजिणवरिंदाणं ।
सब्वे केसव रामा कामा विणिकुचिया हुति” ॥
अर्थात् चतुणिकाय बेव, नारको जीव, भोगभूमिया, चक्रवर्ती, तीर्थंकर, नारायण, बलभद्र और कामdate मुखपर दाढी मूँछोंके बाल नहीं होते हैं । भावार्थ – इन सबके हमेशा नवयौवन अवस्था बनी रहती है । नारकी जीवोंको छोड़कर बाकी ऊपर लिखे सब जीवोंके केवल शिरके बाल होते हैं सो भी सोलह वर्षकी अवस्थावाले पुण्यपुरुषके समान सुशोभित रहते हैं । अन्य साधारण पुरुषोंके समान न तो विशेष उत्पन्न होते हैं और न विशेष बढ़ते हैं। केवल शोभारूप उत्पन्न होते हैं और शोभारूप हो बढ़ते हैं । इसीलिये ऊपर लिखे जीवोंके क्षौर कर्म ( बाल बनवाना ) नहीं होता है । अर्थात् तीर्थंकरादिक कभी बाल नहीं बनबाते । क्योंकि ये इतने बढ़ते ही नहीं हैं। इसके सिवाय एक और बात यह भी है कि यदि तीर्थंकरोंके मुखपर दाढी मूंछ के बाल माने जायें तो उनकी प्रतिमामें भी दाढी मूंछ के बाल मानने पडेंगे, परंतु ऐसा है नहीं। इस लिये तीर्थंकरोंके बाढी मूंछ का अभाव ही है। जिनप्रतिमामें दाढो मूछोंके बालोंके सिवाय भौंह वालोंका भी निषेध है। लिखा भी है
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