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________________ गर ] के वश अतिशय जन्मसे ही होते हैं उनमें एक अतुलबल नामका अतिशय है इसलिये इसमें कोई आश्चर्यको बात नहीं है । अतएव मेरुपर्वतको कंपित किया मानना सत्य है । रावणने भी बालिमुनिसे बैर विचार कर कैलाश पर्वतको उठाया था। उस समय श्रीबालिमुनिने वहाँके जिनबिंब तथा जिनमंदिरोंको रक्षाके लिये अनेक जोaint रक्षाके लिये अपने पैर का अंगूठा दबाकर कैलाशको स्थिर रखना चाहा था । उस समय रावण कैलाशके नीचे दब गया था इत्यादि वर्णन पद्मपुराण में लिखा है। फिर भला श्रीमहावीर स्वामीके द्वारा मेरु पर्वतके कंपित होने में क्या संदेह है। हाँ, यह कथन मूलसंवमें नहीं है । ३ चर्चा तीसरी प्रश्न- भगवान्‌ के माता-पिताके नोहार है या नहीं ? समाधान--- छप्रस्थ तीर्थंकर प्रभुके, तीर्थंकर के माता-पिता के वलभद्र, चक्रवर्ती, नारायण, प्रतिनारायण और समस्त भोग-भूमियाँ जीवोंके आहार तो है परन्तु मलमूत्ररूप नीहार नहीं है। ऐसा नियम है, सो ही षट्पाहुड टीकामें लिखा है । " तित्थयरा तपियरा हलहरचक्कीवासुदेवा हि । पडिवासु भोगभूमिय आहारो णत्थि णीहारो" || ४- चर्चा चौथी प्रश्न – मुनिराज जो केशलोंच करते हैं सो कहाँ-कहाँके केश उखाड़ते हैं और कहाँ-कहाँके नहीं उखा ड़ते हैं । समाधान- मुनिराज शिरके और बाढ़ो मूछके केश उखाड़ते हैं कांख और नोचके लिंग वृषणके केश नहीं उखाड़ते। कांख और लिंग वृषण केशोंको रक्षा करते हैं, ऐसी आम्नाय है । मुनियोंको लोच करना इसी प्रकार कहा है। चारित्रसार में लिखा है- “शिरः मुखमश्रुलो चोऽषः केशरक्षणमिति" । इसी प्रकार इन्द्रनंदि सिद्धांतचक्रवर्तीोंने नीतिसारमें लिखा है- 'अचेलत्वं शीर्षकूचं लोचोऽपः केशधारणमिति । इस प्रकार जानता । [६]
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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