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________________ चर्चासागर - - - -- “सतालमंगलच्छत्रचामरध्वजदर्पणः सुप्रतिष्ठं च भंगारः कलशः प्रतिगोपुरम् ॥ इसी प्रकार लम्पादिपराणमें भी लिखा है। "छत्रचामरभंगारकलशध्वजदर्पणः । सुप्रतिष्ठकतालाश्च शोभते गोपरं प्रति ॥ १३६ ॥" इसी प्रकार श्रीनेमिचंद्र सिद्धांतचक्रवर्ती विरचित त्रिलोकसा में लिखा है "भिंगारकलशदप्पणवीयणधयचामरादवत्तमहा । सुवइट मंगलाणि य अट्ठहियसयाणि पत्तेयं ॥ ६८६ ॥" इस प्रकार अष्टमंगल द्रव्य कहे हैं। कोई-कोई लोग इनमें कांस्यताल और सिंहासन बतलाते हैं सो मिथ्या है। शास्त्रोंमें तो ऊपर लिखे ही बतलाये हैं । तथा मंगलद्रव्य आठ ही हैं इनके सिवाय जो लोग कहते हैं वे शास्त्रोंसे अनभिज्ञ हैं। २-चर्चा दूसरी प्रश्न-“श्रीमहावीर स्वामीने जन्मकल्याणके समय अभिषेक के लिये पांडुकशिलापर विराजमान होते हुए इनका संदेह दूर करनेके लिये अपने पैरका अंगूठा दबाकर सुवर्शनमेरुको कंपायमान किया"। ऐसा श्वेतांबरी कहते हैं सो जैनमतमें इसका समाधान किस प्रकार है ? ____समाधान-विगंबरमतमें भी काष्ठासंघ संप्रदायमें भी इसी प्रकार कहा है, देखो श्रीरविर्षणाचार्य । विरचित पयपुराण पर्व दुसरा । पादांगुष्ठन यो मेरुमनायासेन कंपयत्। लेभे नाम महावीर इति नाकालयाधिपात् ॥ ७६ ॥ इस प्रकार कहा है तथा इन्द्र के द्वारा महावीर नाम भी इसी कारण पाया है । इसके सिवाय भगवान१. जिसने अपने पैरके अंगठेको दबाकर बिना किसी परिश्रमके मेरुपर्वतको कंपायमान कर दिया और इसके लिये इन्द्रसे महावीर esweave HTTAmarpan नाम पाया।
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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