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चर्चासागर [ ४ ]
समुह में जिस प्रकार अनेक नदियोंका समागम होता है उसी प्रकार इस ग्रंथ में भी अनेक शास्त्रोंके प्रमाणरूप गाथा, श्लोक आदि नबियों का समागम हुआ । जिस प्रकार समुद्र में बडवानल है उसी प्रकार इस शास्त्रमें भी ज्ञानरूपी बडवानल है । जिस प्रकार समुद्र में अनेक मगरमच्छ आदि दुष्ट जीव संचार करते हैं उसी प्रकार इस शास्त्रमें भी अनेक प्रकारके पक्षपाती, एकांत विपरीत आदि मिथ्यात्वको धारण करने वाले, दूसरोंकी निन्दा करनेवाले, रागी, द्वेषी आदि जीवोंके हृदय (विचार) रूपी मगरमच्छों का संचार हुआ है। जिस प्रकार समुद्र में अनेक जहाज गमन करते हैं उसी प्रकार इस ग्रन्थमें भी गुरुके वचनरूपी जहाज गमन करते हैं। जिस प्रकार समुद्रका जल बहुत खारा है उसी प्रकार इस ग्रंथका शास्त्रोक्त वचनरूपी शास्त्रोंकी बातोंका न माननेवाले हठग्राही लोगोंको बहुत खराब लगता है। तथा जिस प्रकार समुद्र में भ्रमर पड़ते हैं उसी प्रकार इस शास्त्ररूपी समुद्र में शास्त्रों के मर्मको न जाननेवाले जीवोंके प्रवेश करते ही अनेक प्रकारके भ्रमरूपी भ्रमर उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार समुद्र में अनेक गुणोंसे सुशोभित यह चर्चासागर शास्त्र है।
यहाँपर किसीने पूछा कि शास्त्र शब्दका क्या अर्थ है इसके उत्तर में ग्रंथकार कहते हैं कि शास्त्र शब्द शास् धातुसे बना है । शास् धातुका अर्थ अनुशासन करना अथवा शिक्षा देना है। जिसकी आज्ञाको सब लोग मानें अथवा जिससे अपने आत्मकल्याणको शिक्षा प्राप्त हो, उसको शास्त्र कहते हैं, इससे भी आत्मकल्याणको शिक्षा मिलती है । अथवा भगवान् अरहंत देवकी आज्ञानुसार कथन करनेसे इसकी आशा भी समस्त भव्य जीव मानते हैं इसलिये इसको शास्त्र कहते हैं। आगे अनुक्रमसे चर्चाओंका आरंभ करते हैं ।
१ - चर्चा पहली
प्रश्न -- श्रीअरहंत भगवान्के समवशरणको गंधकुटीके प्रथम द्वारपर जिनराजके सामने तथा शाश्वत अकृत्रिम जिनालयोंको गंधकुटीमें जिनप्रतिमाके आगे अष्टमंगल द्रव्य रक्खे रहते हैं सो वे कौन-कौन हैं। समाधान - भगवान् के सामने रक्खे हुए ये अष्टमंगल द्रव्य बड़ी शोभासे सुशोभित हैं उनके नाम ये हैं- सारी, कलश, ठोना, ( स्थापना ) सुप्रतिष्ठ, तालव्यजन ( पंखा ), दर्पण, चमर, छत्र, ध्वजा । ये आठ मंगलद्रव्य है इनमें कहीं-कहीं स्वस्तिक भी आता है परन्तु वहाँपर स्वस्तिकका अर्थ ठोना ही करना चाहिये । देखो श्री जिनसेनाचार्यविरचित आदिपुराण पर्व बाईसवाँ श्लोक २९१
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