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________________ सागर २६० ] वन मिला उसमें एक महामुनि विराजमान थे उन मुनिके शरीर में उनके अशुभ कर्मके उदयसे अत्यन्त दुस्सह दुर्गन्धमय रोग हो गया था। उसकी दुर्गन्ध हवाके सहारे उस विद्याधरके विमान तक फैल गई थी तथा उस विद्याधरको उस दुर्गन्धसे उत्पन्न हुई ग्लानि सहन नहीं की गई थी इसीलिये वह नीचे उतरा और उसने देखा कि महा मुनिराज ध्यानमें लीन हुए खड़े हैं तदनन्तर उसने उनके शरीरपर वाधन चंदनका सर्वांग लेप किया । उस विद्याधर ने वह लेप कुछ भक्तिभावसे नहीं किया था किंतु अपनी ग्लानि दूर करनेके लिये किया था । उस के लगते ही उसकी सुगन्धिसे मुनिराजके शरीरपर बहुतसे भ्रमर आकर लग गये थे जिनसे उन मुनिराजको भारी उपसर्ग हुआ था। जब वे दोनों विद्याधर विद्याधरणी मेरुकी यात्रा कर वापिस आये तो उन्होंने उस भारी अनर्थको देखा। तब उन्होंने अपनी विचिकित्सा वा ग्लानि रूप भावोंकी निन्दा की और उन मुनिराजका उपसर्ग दूर किया। तब अपनी निन्दा करनेसे उस विद्याधरका थोड़ा-सा पाप दूर हुआ। बाकीके पाप कर्मके उदयसे अगले जन्म में वह विद्याधर किसी सेठकी पुत्रो हुआ । तथा कंचन समान ( सुवर्णके समान ) सुन्दर और सुगन्धमय शरीर हुआ । इस प्रकार जिनप्रतिमा, जिनधर्म और जिनलिंगके ( मुनिराज के ) ग्लानि करनेका फल तथा उस पाप फो बूर करनेके लिये अभिषेक तथा चंदनाविक गंधके लगनिका कथन षट्कर्मोपदेश रत्नमाला में गंधकी पूजाके फलमें विस्तार के साथ बतलाया हूँ । सो कहाँ तो शास्त्रोंका यह कथन और कहाँ तुम्हारा यह उनकी निन्दा करनेवाला वचन सो भी तुमको विचार करना चाहिये । Are कोश तथा षट्कर्मोपदेश रत्नमाला में या और भी अनेक ग्रन्थों में ज्येष्ठ जिनवर व्रतके विधानमें ब्राह्मणी की पुत्री तथा कुम्हारको कथा लिखा है। इन्होंने श्रोजिनप्रतिमा की जलकी पूजाके समय कुम्भके ( घटके) जलसे अभिषेक किया था तथा अनुमोदना की थी सो उसका फल उनको अलग-अलग महापुण्यरूप मिला था । ऐसा शास्त्रोंमें कथन है । तथा ब्राह्मणीको सासुने उस अभिषेककी निश की थी सो उस निदाके पापसे उसके मस्तकपर कुम्भके समान बड़ा भारी फोड़ा हुआ। तथा वह महा दुर्भागा और अत्यन्त निद्यनीय हुई थी । तदनन्तर उन सब जीधोंने मुनिराजसे अपने पहले भय सुने थे उनको सुनकर उसने उस ब्राह्मणी के जीवके चरण स्पर्श किये थे । उन चरणोंके स्पर्श करनेसे ही उसका वह फोड़ा अच्छा हो गया था । तब उसने [ २६०
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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