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हूँ, पूजा करता हूँ, वंदना करता हूँ, नमस्कार करता हूँ। ऐसा करनेसे मेरे दुःख नाश हों, कर्म नाश हों,
रत्नत्रयको प्राप्ति हो सगति में जन्म हो, समाधिमरण हो और भगवानके गुण प्राप्त हों। चर्चासागर
इस प्रकार कथन किया है सो क्या देवोंके जिमानोंमें वा आवासों में भी प्रतिमापर धूलि आदि मलि[२९९ ] नता जम जातो है जो देव उसका अभिषेक करते हैं तथा समवशरणमें केवलियोंको छोड़कर मानस्तम्भादिकों
पर जो जिनप्रतिमाएं विराजमान हैं उनको इन्दादिक देव अभिषेकपूर्वक पूजा करते हैं ऐसा जिनसेनाचार्यने आदिपुराणमें लिखा है। सो पया यहां भी प्रतिमाकी मलिनता दूर करने के लिये अभिषेक किया जाता है वहींपर बिना अभिषेकके पूजा क्यों नहीं की जाती ? क्या आप लोगोंको यह श्रद्धान नहीं होता कि समवशरणको भूमि वर्पणके समान निर्मल और निस्कंटक है वहां मलिनता कहांसे आई ? सो खूब विचार कर लेना चाहिये। । इस कथनको कहनेवाले लोक पहले लिख चुके हैं।
इसके सिवाय श्रीपालके जीवने पूर्वभवमें सरोवरके किनारे किसो मुनिको देखकर कहा था कि यह मुनि कैसा मलिन दिखता है मानों इसे कोड़ रोग हो गया हो । यह कभी स्नान नहीं करता, इसको देह महा । मैली ग्लानिरूप अमनोज्ञ है जो देखो भी नहीं जा सकती। श्रीपालके जीवकी यह बात सुनकर उसके साथी । सातसौ सुभटोंने भी यह बात मान ली और उन्होंने भी कहा कि हां यह ऐसा ही दिखता है । यह सुनकर
श्रीपालके जीवने कहा कि इसको पकड़कर इस सरोवर में डुबा वो तथा पकड़ कर बहुतसे गोते लगाओ। अपने । राजाको यह बात सुनकर उन सुभटोंने वैसा ही किया और उन मुनिराजको भारी उपसर्ग किया। उसी पापकर्मके उवयसे राजा श्रीपालके तथा उनके साथी सातसौं योद्धाओंके महा कोड़ रोग उत्पन्न हुआ था तथा के सातसौ योगा समुद्र में पड़कर इसे थे इस प्रकारका कथन अनेक ग्रन्पोंमें विस्तारके साथ लिखा है।
जिन लिंगकी ( मुनि वा प्रतिमा आदिको) विचिकित्सा वा ग्लानि करनेका फल सम्यक्रमका नाश करनेवाला और महापाप बंधका कारण है। इसी प्रकार तुम्हारा भी यह कहना है जो प्रतिमाजी मैली हो जाती हैं, बुरी लगती हैं, अच्छी नहीं लगतीं इसलिये जलके वस्त्रसे पोंछकर उज्ज्वल बार लेते हैं । तुम लोग अभिषेकसे होनेवाले पुष्पको नहीं समझते ।
एक विद्याधर अपनी बल्लमाके साथ मेरु आदि पर्वतोंको यात्राके लिये जाता था। मार्गमें एक महा।
रामायाराम