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________________ चर्चासागर [ २५२) यशस्सिलफचम्पूमें लिखा है मंदमदमदनभानं मंदरगिरिशिखरमज्जनावसरे । कंदमुयालतिकायाश्चन्दनचर्चाचितं जिनं कुर्वे ॥ अर्थात् भगवानके चरणोंको चन्दनसे विलेपन कर पूजा करता हूँ। प्रतिष्ठा-पाठ जिन यज्ञ कल्पमें लिखा है किसी एक अहिच्छत्रपुर नगरके राजा वसुपालने अपने घरमें श्रीपाश्र्वनाथका चैत्यालय बनवाया था उसमें प्रतिष्ठापर्वक पार्वनाय बिब विराजमान किया या तथा कितने ही दिन बाद उस राजाने कारसे उस प्रतिमापर लेप चढ़वाया था इसका वर्णन आराधनाकथाकोशमें विस्तारके साथ लिखा है। उसमेंसे लेपका इलोक यह हैतस्यां लेपः कृतस्तेन सलेपः संस्थितस्तदा । कार्यसिद्धिर्भवत्येवं प्राणिना प्रतशालिना ॥ अर्थात् 'उसने फिर उस प्रतिमापर लेप कराया इसलिये वह बिंब लेपसहित विराजमान रहा । सो ठीक हो है प्रती प्राणियोंकी कार्यसिदि इसी प्रकार होती है। जो पुरुष भगवानके चरणकमलों में लेप करते हैं उनके अनेक रोगोंकी शांति होती है। किसो एक मदनावली नामकी रानोने पहले भवमें मुनिको निन्दा की थी उस पापसे उसके शरीर में अत्यन्त दुर्गन्ध उत्पन्न हो गया था सो उसने उस रोगको शांत करनेके लिये किसी अजिकाके उपदेशानुसार भगवानका अभिषेककर सात दिन तक प्रातःकाल, मध्याह्नकाल और सायंकाल तीनों समय गंध लगाकर पूजा की थी उसोसे उसकी वह दुर्गन्ध व्याधि दूर हुई थी। तया आयु पूर्ण होनेके बाद वह पांचवें स्वर्गमें । से उत्पन्न हुई थी। षट्कर्मोपदेशरत्नत्रयमालामें भी इसका वर्णन लिखा है । यथा-- इति मां निश्चयं कृत्वा दिनानां सप्तकं सती। श्रीजिनप्रतिबिंबानां स्नपनं सा ह्यकारयत् ॥ चंदनागुरुकपरैः सुगंधैश्च विलेपनैः। सा राज्ञी विदधे प्रीस्या जिनेन्द्राणां त्रिसन्ध्यकम् ॥ नाराबासमाRAELI
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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