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________________ पर्यासागर [११] जिसने श्रीअरहन्तदेवके वरण-कमलोंको चंदनसे विलेपन नहीं किया वह कभी धर्मात्मा नहीं हो सकता। ऐसा प्रतकथाकोशमें लिखा है । यया--- न लिप्तश्चन्दनैरहन् भगवानके चरण-कमलोंमें केशर, चन्दन लगाना बसुनन्दिकृत श्रावकाचारमें भी लिखा है । यथा-- कपूरकुकुमापरुत्तरुक्कमिस्सेण चंदणरसेण । वरवहलपरिमलामोपवासिया सा समूहेण ॥ वासाणुमग्गसंपत्ता मयमत्तालि एव मुहलेण।सुरम उडघट्टचलणं भत्तिए समलहिज्ज जिणं।। सनि जिसपर मर गुजार कर रहे है इसे पूर, कुंकुम, चंदन आदिसे भक्तिपूर्वक विलेपन करता है वह जिनेन्द्र के समान विभूति पाता है। __ सकलकोति कृत सिद्धान्तसारप्रदीपकको पन्द्रहवीं सन्धिमें लिखा हैतत्र नतोत्तमांगेनाहन्..........."अर्चयन्ति महाभूत्या महाभक्त्या महोस्सवैः। मणिभृङ्गारनालांतनिर्गतैस्तु जलोत्करैः दिव्यामोदनभैाप्त जगत्सारैर्विलेपनैः।। जो भव्यजीव बड़ी भक्तिसे, उत्सवसे, विभूतिसे, मणिके बने भंगारकी नालसे निकले जलसे तथा अपनी ! सुगन्धिसे आकाशको व्याप्त करनेवाले चंदनके विलेपनसे भगवानकी पूजा करता हूँ। षट्कर्मोपदेश रत्नमालामें गंध पूजाके समय लिखा हैनरेण येन नार्या वा कृतं जिनविलेपन । तयोः कथामहं वक्ष्ये श्रोतव्या सावधानतः।। अर्थात् सकलभूषणने लिखा है कि जिन स्त्री, पुरुषोंने भगवानका विलेपन किया उनको कथा कहता हूं सावधान होकर सुनो। धोवसुनन्दिने भी पूजाके फलके समय लिखा है चंदणलेप्पेण णरो जायइ सोहागसंपण्णो। अर्थात् यह मनुष्य चंदनका लेप करनेसे सौभाग्यवान होता है।
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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