SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 270
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पर्यासागर [२४८ ] यह बदन चढ़ानेका है। इसी प्रकार और भी पाठ है, जो चतुर्विशतिके मंडलपाठमें अलग-अलग जिनपादके विलेपन करना कहा है। देखो सुपार्श्वनायको पूजामें लिखा हैकुकुमेन की रेण चंदनेन सुगंधिना । श्रीजिनेन्द्रपदाभोज विलेपेहं सुभावतः॥ अर्थात् भगवानके चरण कमलों को कुंकुम, कपूर, चन्दन आविसे लेपन करता हूँ। श्री चन्द्रप्रभको पूजामें लिखा है-- सुकुकुमश्चन्दनचन्द्रमिश्रितैः विलेपयेहं शशिपादपद्म। अर्थात् चन्द्रप्रभके चरण-कमलोको कपूर, चन्दन आविसे लेप करता हूँ। श्री शीतलनाथको पूजामें लिखा है-- सुकु कुमैः चन्दनेन मिश्रितैः विलेपयामि जिनपादपयोजयुग्मम् । श्रीशीतलेश विधिना यजामि संसारतापहननाय सुखाय शांत्यै ॥ अर्थात् भगवानके चरण-कमलोंको कुंकुम, चंबन आदिसे लेपन करता हूँ। श्रीश्रेयांसनाथको पूजामें लिखा है सुकु कुमैश्चन्दनचन्द्रयुक्तैर्विलेपयेहं जिनपादयुग्मम् । श्रेयांसदेव परिपूजयेहं त्रैलोक्यनाथार्चितपादयुग्मम् ॥ तीनों लोकोंके द्वारा पूज्य ऐसे श्रेयांसनाथके चरण-कमलोंको चन्दनादिकसे लेपन करता हूँ। श्रीवासुपूज्यको पूजामें लिखा है-- सुकु कुमैश्चन्दनचन्द्रमिश्रितैः विलेपयेहं जिनपादयुग्मम् । श्रीवासुपूज्यं प्रयजे सदाहं सुवासवानां शतकेन पूज्यम् ॥ अर्थात् सो इन्द्रोंके द्वारा पज्य ऐसे श्रीवासुपूज्यके चरणकमलोंको कपूर, चन्दन आविसे विलेपन । करता है। [
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy