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वर्षासागर [ २४७ ]
पूजासारमें लिखा हैक्षौदैः
कर्पूर मिश्रैर्वहलपरिमलाकृष्टभृ गांगनानी, मोदः स्वर्गापवर्गफलम मलमतं चंदनैः क्ष्मारुहाणाम् ॥ नैःफल्यं नेति शैत्यं प्रथयतु न मिलनाप्नुवद्भिः दिगन्तान्, गंधैः संबंधनीयं त्रिजगदधिपतेः पादमापादयामि ॥ अर्थात् भगवानके चरणकमलोंको अत्यन्त सुगन्धित कपूर, चंदन आदिसे दिलेपन करता हूँ पूजासारमें दूसरी पूजामें लिखा है
समृद्धभक्त्या परया विशुद्धया, कर्पूरसम्मिश्रितचन्दनेन ॥ जिनस्य देवासुरपूजितस्य, सुलेपनं चारु करोमि मुक्त्यै ॥ ॐ ह्रीं अहं सर्वकर्मविलेपनरहितपवित्राय नमः उद्वर्तनम् ।
अर्थात् "मोक्ष प्राप्त करनेके लिये इन्द्रोंसे पूज्य भगवानको बड़ो भवितसे चंदनादिकसे विलेपन करता
हूँ । समस्त कर्मों के विलेपनसे रहित भगवानका उद्वर्तन ( उबटन ) करता हूँ ।
भगवदेकसंधिकृत जिनसंहितामें लिखा है
ओं चन्दनेन कर्पूरवि मिश्रण सुगंधिना व्यालिंपामो जिनस्यांघ्रिः निलंपाधीश्वरार्चितः ॥ अर्थात् इन्द्रोंके द्वारा पूज्य भगवान के चरणोंकों कपूर, चंदन आदिसे लेपन करता हूँ । शांतिचक्र विधान में लिखा है-
श्रीचंद मुदा चर्चे चंद्रगर्भैः स्फुरत्प्रभैः । दिव्यतेजोमयं शांतिमंत्रात्मानमघच्छिदे ॥ अर्थात् पापको नाश करनेके लिए विव्य तेजोमय शांतियन्त्रको केशर, चन्दन आदिसे लेपन करता हूँ । अकृत्रिम श्यालयकी भाषापूजा में लिखा है
सौरभेयद्रव्य लेय पादयुग्म चर्चिकें । भवाताप शांत है जिनेंद्रपीठ अर्चिके ॥ तीन लोक जैन भौन अकृत्रिम पूजिये । अष्टकर्म भानि सार सौख्यरूप हूजिये ॥
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