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________________ पर्चासागर श्रीप्रभाकरसेनप्रतिष्ठापाठ में लिखा हैयश्चन्दनैश्च नवकुकुम र्जिनस्य कर. विलपंति देहम् । अर्थात् जो भगवानके शरीरको ( धरणोंको ) चंदनादिकसे विलेपन करता है। श्रीआशाधरकृत जिनयज्ञकल्पमें लिखा है काश्मीरकृष्णागरुगंधसारकप पौरस्त्यविलेपनेन । निसर्गसौरभ्यगुणोल्वणानां संचर्चयाम्यंधियुगं जिनानाम् ॥ अर्थात् स्वभावसे ही अत्यन्त सुगन्थित ऐसे भगवानके चरणकमलोंको केशर, कपूर, चन्दन आदि द्रव्योंसे विलेपनकर पूजन करता हूँ। त्रिकालचतुर्विशतिका पूजामें लिखा है गंधसारधनगंधविलेपैगंधसारहिमकुकुमयुक्नैः। गंधसारहिमलिंदिकव दैर्यायजीमि ऋषभादिजिनेंद्रान् । अर्थात् 'मैं ऋषभावि जिनेन्द्रोंको चन्दनादिकसे विलेपनकर पूजन करता हूं।' श्रीयोगोन्द्रदेवकृत प्राकृतश्रावकाचारमें बोधक छन्दमें लिखा है __ 'जो जिणु चंदन चच्चइइए' अर्थात जो भगवानको चंदनसे चर्चता है। प्रथमपुराणको संधि २३ श्लोक १०६ में लिखा है-- अथोत्थाय तुष्टाः सुरेन्द्राः स्वहस्तैर्जिनस्यांघिपूजां प्रचकः प्रतीताः॥ सुगंधैः समाल्यैः संदीपैः सधूपैः, सदिव्याक्षतैः प्राज्यपीयूषपिंडैः॥ अर्थात् इन्द्र संतुष्ट होकर खड़े हुए और उन्होंने गंध, माला, बीप, धूप, अक्षत, चरु आविसे स्वयं भगवानके चरणकमलोंकी पूजा की। - -
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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