________________
विलेपनं गंधसुगंधद्रव्यैर्येषां प्रकुर्वन्त्यमराश्च तेषाम् ।
कर्नेव नंगे वरचन्ददायनन्दीश्वरदीपजिनाधिपानाम् । चर्चासागर
अर्थात् जो भव्यजन कपूर, कुकुम, चन्दन आविसे भगवानके घरगोंको लिपन करते हैं वे सुगन्धित । [ २५ शरीरको धारणकर सुम्बर देवांगनाओं सहित स्वर्ग में निवास करते हैं । नन्दीश्वरद्वीपमें विराजमान जिनप्रति
माओंक अंगमें देवगण सुगंधित द्रव्योंसे लेप करते हैं इसीलिये मैं नन्दीश्वर द्वीपमें विराजमान भगवानके चरणोंपर चन्दनका लेप करता हूँ।
त्रिवर्णाचारमें भी लिखा हैजिनाधिचन्दनैः स्वस्य शरीरे लेपमाचरेत् । यझोपवीतसूत्रं च कटिमेखलया युतम्।।
अर्थात् भगवानके चरण स्पशित चंदनसे अपने शरीरपर लेप करना चाहिये तथा यज्ञोपवीत और फटिमेखला धारण करनी चाहिये । मुक्तावलिपूजामें भी लिखा है--
सदगंधसारधनसारविलेपनैश्च गंधागतालिकुलजाततरुप्रकांडैः ।
उद्यापनाय जिनपादसरोजयुग्मं मुक्तावलीनतपरस्य यजेतिभक्त्या। अर्थात् 'मुक्तावलीवतके उद्यापन के लिये भगवान के चरणकमलोंको चंदनसे लिपन करना चाहिये।
श्रीपालचरित्रमें सिद्धपूजाके समय लिखा हैमिश्रकुंकुमकपरसुगंधचंदनद्रवैः । हेमादिभाजने सिद्धचक्रमुढत्य भक्तितः ॥ अर्थात् 'सुवर्णाविकके पात्रमें कपूर, चंदनाविकसे सिद्धचक्र यंत्रको उर्वतन ( विलेपन ) करना चाहिये । अभयनवितरिकृत श्रेयोविधानमें लिखा है--
काश्मीरपंकहरिचंदनसारसांद्रनिष्पंदमाभिरुचितेन विलेपनेन ।
अव्याजसौरभतनो प्रतिमा जिनस्य संचर्चयामि भवदुःखविनाशनाय ॥
अर्थात् 'संसारके दुःख दूर करनेके लिये मैं भगवानको प्रतिमाको ( उनके चरणोंको) केशर, चन्दन । आविसे विलेपन कर पूजन करता हूँ।
चायनान्य