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सागर
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कदाचित् कोई यह कहे कि "भगवानके चरणोंके गंध लगाना सरागताका कारण है तथा अयोग्यता आदि अनेक दोषोंको उत्पन्न करनेवाला है परन्तु ऐसा कहना भी बड़े अनर्थका कारण है। यदि यह कहना ठीक है कहनेवाले शास्त्रोका प्रमाण देना चाहिये। भगवानके चरण-कमलों में केशर, चंदन आदिके लगाने का किन-किन शास्त्रोंमें निषेध है उनको लिखना चाहिये। अमुक शास्त्रमें अमुक गायामें तथा अमुक भाषा में गन्धादिकके लगानेका निषेध है सो बतलाना चाहिये । केवल अपनी इच्छानुसार मुखसे ही कहना था लिखना योग्य नहीं है। बिना प्रमाणके ऐसा कहना बड़ी बात है, छोटी नहीं है इसलिए ऐसी बात न लिखनी चाहिये न कहनी चाहिये ।
प्रश्न- भगवान के चरणोंपर गन्ध लगाना कहाँ कहा है ?
समाधान-गन्धका लगाना ऊपर पुष्पादिकके वर्णनमें कह ही चुके हैं तथा जिन-जिन शास्त्रों में ( जैनमत शास्त्रों में ) पूजाका प्रसंग आया है वहाँ ही इसका वर्णन लिखा है। उनमें कुछ शास्त्रोंके नाम श्लोक गाथा आदि लिखते हैं ।
श्रीशुभचन्द्रस्वामी विरचित सहस्रगुणी पूजामें लिखा है ।
परिमल विमलाढ्य रिन्दुकश्मीर मिश्रः निखिलमिलितद्रव्येचन्दनैर्वाणपेयैः । शिवसदन निविष्टं नाद्यनन्तं प्रयुक्तं दशशतकरधारं चर्चये सिद्धचक्रम् ॥ अर्थात् कर्पूरादि मिले हुए घिसे चन्दनसे सिद्धचक्रकी पना ( पूजा ) करता हूँ । सकलकीर्तिविरचित श्रीशान्तिनाथ पुराण सन्धि ७ श्लोक १३१ में लिखा है ।
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स्वच्छनीरैः पवित्रैश्च दिव्यः गंधविलेपनैः । मुक्ताफलादिजैः सौरैरक्षतैः स्वर्गसंभवैः चंपकादिमहापुष्पैर्नैवेद्यैश्च चतुर्विधैः । ज्वलद्वीपैर्महाधूपैः फलैः कल्पद्रुमादिजैः ॥
अर्थात् स्वच्छ पवित्र जलसे, दिव्य गन्धके विलेपनसे, मुक्ताफलादिक अक्षलोंसे, चम्पक आवि पुष्पोंसे नैवेद्य, बीप, धूप, फलोंसे भगवानकी पूजा करता हूँ ।
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