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________________ चर्चासागर [ २४२ ] प्रकार किया जा सकता है परन्तु ग्रन्थों में चरणरजके लगानेसे अनेक रोगादिकोंका नादा होना बतलाया है। इससे सिद्ध होता है कि भगवान के चरणस्पर्शित गन्ध धूपको ही चरणरज कहते हैं। जो कोई भीषण जलोदर आदिका रोगी भी इसको लगाता है उसका शरीर भी देवोंके समान अत्यन्त रूपवान हो जाता है। इससे जीयोंके समस्त रोग न हो जाते हैं। जिसका शरीर जलोदर आदि अनेक रोगोंसे जर्जरित हो गया है, जिसकी शोषतोष गवत्या हो गई है मृत्युको निकट पहुँच चुका है, जीवित रहनेको जिसकी आशा छूट चुकी है ऐसा मनुष्य भी यदि भगवानके चरणरजको लगाये तो उसके समस्त रोग नष्ट हो जाते हैं तथा वह कामदेव के समान सुन्दर हो जाता है। ऐसा शास्त्रोंमें लिखा है सो यह गुण, जल, गन्ध, अक्षत, पुष्प आदिमें नहीं है किन्तु भगवानके चरणोंके स्पर्श करनेसे उनमें यह गुण आ जाता है। सो ही श्रीमानतुंगाचार्य श्रीवृषभनाथ की स्तुतिमें ( भक्तामर में ) कहा है उद्भूतभीषणजलोदरभारभुग्नाः, शोच्यां दशामुपगताश्च्युतजीविताशाः ॥ त्वत्पादपङ्कजरजोमृतदिग्धदेहाः मर्त्या भवन्ति मकरध्वजतुल्यरूपाः ॥ इसलिए भगवान के चरणस्पर्शित गंध, पुष्प सदा ही वन्दना करने योग्य हैं। जो कोई पुरुष बिना समझे इसकी निन्दा करते हैं उनके कर्मका बंध होता है। इसलिये ऊपर लिखे अनुसार तिलक आदि बेकर भव्य जीवोंको भगवान की भक्ति करनी चाहिये । प्रश्न- यदि कोई तिलक न करें तो क्या दोष है। यह तो इच्छा पर निर्भर है करें या न करें ? समाधान -- जैनी श्रावकको बिना तिलकके रहनेकी मनाई है। शास्त्रोंमें लिखा है कि णमोकार आदि मन्त्रोंके जप, होम, सत्पात्रों को दान, जैनशास्त्रोंका पाँचों प्रकारका स्वाध्याय, पितृतर्पण, जिनेन्द्रदेवका पूजन तथा शास्त्र श्रवण आदि कार्य बिना तिलक लगाये कभी नहीं करने चाहिये। इससे सिद्ध होता है कि पहले तिलक कर लेना चाहिये पीछे ऊपर लिखे कार्य करने चाहिये । सो ही लिखा है-जंपो होमस्तथा दानं स्वाध्यायः पितृतर्पणम् । जिन पूजाश्रुताख्यानं न कुर्यात्तिलकं विना ॥ १., २. इनका अर्थ उनके ऊपर लिखे अनुसार है । [ २४
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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