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________________ पर्यासागर [ २३३ ] 'वर्शनंवेव' इन शब्दका पदच्छेद 'दर्शनंया इव' करना चाहिये। वर्श शम्बका अर्थ कृष्णपक्षको अमावस्या है। सोही लिखा है। 'अमावस्या स्वमावस्या वर्गः सूर्येन्द्रसंगमः' अर्थात् अमावस्या अमावस्य वर्षा ये उस बिनके नाम हैं जहां सूर्य चन्द्रमाका समागम होता है अर्थात् कृष्णपक्षको अमावसके हैं। तथा नन्दा शब्दका अर्थ । एकादशी है । सो ही लिखा है 'प्रतिपत्षष्ठी एकादशी नवा इति बालबोधपंचांगे पाठः' अर्थात् पत्या, षष्ठी, । एकादशीको नंदा कहते हैं ऐसा बालबोध पंचागमें लिखा है। घष्णवमतमें और लौकिक शास्त्रमें ऐसा कहा है कि अमावस्या और एकादशी ये दोनों पुण्यतिथि हैं इनमें वान, प्रत, उपवास आदि करनेसे महान् पापोंका नाश होताहै। ये पर्व बहुतसे पापोंके नाश करनेवाले हैं। इसीलिये इनको पुण्यवर्ती कहते हैं। जिस प्रकार अमावस्या और एकादशोके पर्व बहुतसे पापोंके नाश करनेवाले हैं उसी प्रकार व अर्थात् वीतराग परम वेषके दर्शन करना भी बहुतसे पापोंका नाश करनेवाला है। भावार्थ--यहाँपर केवल लौकिक दृष्टांत दिखलाया है। वास्तव में देखा जाय तो वीतराग परमदेवका दर्शन करना अमावस्या और एकादशीके समान नहीं है किन्तु इससे अनेक जन्मोंके पाप नष्ट हो जाते हैं सो लिखा हो है 'नेकजन्मकृतं पापं वर्शनेन विनश्यति' इससे सिद्ध होता है कि वीतराग परमदेवके दर्शन करना सर्वोत्कृष्ट । है। अमावस्या और एकादशो तो उसके सामने कुछ भी नहीं है।' वर्श नंदा इव' इस कच्चे रूपका पक्का रूप व्याकरणके नियमानुसार 'दर्शनंदेव' बन जाता है । नवा | इव इसकी संधि करनेसे 'अवर्ण इवणे ए' अर्थात् 'इवर्ण परे रहते अवर्णको ए हो जाता है तथा परका लोप हो जाता है' इस सूत्रसे वा के आकारको ए हो जाता है और इव के इकारका लोप हो जाता है । इस प्रकार दर्शन ॥ देव ऐसा बन जाता है। इससे सिख होता है कि ये श्लोक किसी साधारण विद्वान्के बनाये हुये नहीं हैं किन्तु किसी बड़े विद्वानके बनाये हुये हैं और इसमें पुनरुक्त आदि कोई दोष नहीं है । निर्वाष पाठ है। १. ग्रन्थकारने यह परमतका उदाहरण दखला कर समाधान किया है परन्तु इसका समाधान इस प्रकार भो होता है । 'दर्शनं । देवदेवस्य' अर्थात् दर्शन देवाधिदेव बरहंतदेवका ही करना चाहिये, अन्यका नहीं। (अरहंतदेवके कहनेसे आहता दीक्षा धारण करनेवाले आचार्य, उपाध्याय, साधु भो उमीमें आ जाते हैं ) 'दर्शनं पापनाशनं' वह दर्शन अर्थात् अरहतदेवका दर्शन करना ! पापोंका नाश करनेवाला है। 'दर्शनं स्वर्गसोपानं दर्शनं मोक्षसाधनम्' बही दर्शन स्वर्गको सीढ़ी है और मोक्षका कारण है । इस प्रकार इसका अर्थ समझना चाहिये। FEATREATURALASAHEART
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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