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________________ पर्षासागर २३४] RRE-RELATIONALREADARSHA १६८-चर्चा एकसौ अड़सठवीं पहले पूजाके प्रकरणमें लिखा है कि पूजा करनेवालेको भगवानके चरणस्पर्शित पुष्पमाला तो कण्ठमें धारण करना चाहिये, प्रभुके धरणपशित चन्वनका तिलक लगाना चाहिये वा समस्त शरीरमें भाभूषणोंको रचना करनी चाहिये तय जिन्दावाद वा हमला हा चाहिये, ऐसा लिखा है। सो यह लिखना अत्यन्त विपरीत है क्योंकि इसमें प्रत्यक्ष निर्माल्यका दोष आता है। तथा जैनशास्त्रों में निर्माल्यके समान और कोई पाप नहीं बतलाया है । इसलिये ऐसा कहना अथवा करना महा पापकारी है। ऐसा पक्षात जैनियोंका नहीं हो सकता अन्य मतियोंका हो सकता है। प्रश्न-भगवानको मूतिके वरणाविकमें चंदन, केसर आदि गंध लगाना तथा भगवानके चरणपशित पुष्प और पुष्पमाला पहनना आदि समस्त प्रज्ञान विपरीत है। इसमें महा पापका बंध होता है। इसलिये ऐसा श्रवान त्याग करने योग्य है । ऐसा श्रद्धान वा शाम वा आचरण कभी योग्य नहीं गिना जा सकता। ऐसा मान अडान बड़े-बड़े अनोंका मूल है इसलिये ऐसा कयन न हमें मान्य है और न हम ऐसा करनेको तैयार हैं। समाधान--बिना शास्त्रोंको समझे और बिना निवभय किये ऐसी बात नहीं कहनी चाहिये । भगवानके चरणस्पशित पुष्पमालाको महिमा क्या है और अपने मस्तक पर तथा कंठमें किसने शरण की है उसका थोडासा कथन यहाँपर लिखते है-- भव्य जीवोंको सबसे पहले जल, गंध, अक्षत, पुष्पादिकसे भगवानकी पूजा करनी चाहिये फिर भग-1 वानके चरणस्पर्शित पुष्पमालाको अपने कंठमें धारण करना चाहिये तथा चरणस्पशित शेषगंषका ललाटमें। तिलक लगाना चाहिए । ऐसा वर्णन त्रिवर्णाचारमे लिखा है। यथा-- जिनांनिस्पर्शितां मालां निर्मले कंठदेशके । ललाटे तिलकं कार्य तेनैव चंदनेन च ।। ___यहाँपर जो वकार है उसका अर्थ तिलकपर पूजाके अक्षत लगाना समझना चाहिए । यवि इस कपनको कोई न माने सो जिनप्रतिष्ठापाठमें भी ऐसा हो लिखा है। जिनपवधीको स्पर्शित पुष्पमाला तीनों लोकों पर। ॥ अनुग्रह करने योग्य है। सो ऐसो यह माला स्वर्गलोकको लक्ष्मी मिलाने के लिए तोके समान है। इसलिए ।
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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