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पर्धासागर [ २२२]
करना चाहिये । पूजाके मंत्र सब अलग-अलग हैं जैसे कि यंत्रमें लिखे हैं सो समझ लेना चाहिये । बालाक्षणिक यंत्र पृष्ठ २२१ (क) में देखो।
१६५-चर्चा एकसौ पैंसठवीं प्रश्न-रत्नत्रययन्त्रकी विधि तथा उसके अर्चनाविककी विधि क्या है ?
समाधान-सम्यग्दर्शन, सभ्याज्ञान तथा सम्पचारित्रको रस्लत्रय कहते हैं। उनमेंसे सम्यग्दर्शनके । तीन भेद हैं । उपशम, क्षायिक और क्षायोपशामिक। सो इनमेंसे कोई एक सम्यग्दर्शन हो और यह निःशखित
आदि आठों अंगों सहित हो, शंकाविक पञ्चचीस दोषोंसे रहित हो और पांचों अतिचारोंसे रहित हो। इस प्रकार के सम्यग्दर्शनको प्रथम रस्त कहते हैं। इसी प्रकार कुमतिज्ञान, कुवतजान और विभंगावधिज्ञानसे रहित तया मतिमान श्रसज्ञान अवधिज्ञान मनापर्ययज्ञान और साक्षात केवलज्ञान इन पांचों ज्ञानोंमेसे किसी एक ज्ञानको सम्यग्ज्ञान कहते हैं और हिंसादि समस्त पापोंका त्याग कर देना सभ्याचारित्र है। इस प्रकार इन तीनोंका सामान्य स्वरूप है। इनका विशेष स्वरूप अन्य शास्त्रोंसे जान लेना चाहिये।
इनमेंसे सम्यग्दर्शनके आठ अंग है, सम्यग्ज्ञानके आठ अंग हैं और सम्यक्चारित्र तेरह प्रकार है। ये तीनों ही रस्ल इस संसारमें जीवोंका उबार करनेके लिये चितामणि रत्नके समान हैं। इनके बिना समारी जोवोंको मोक्ष प्राप्त नहीं हो सकती। ये तीनों ही रल मिलकर मोक्षके मार्ग होते हैं। सो ही मोक्षशास्त्रमें। लिखा है-"सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्ग:" इसलिए भव्य जीवोंको मोक्ष प्राप्त करनेके लिए इनको स्वीकार करना चाहिये तथा इनको प्राप्ति के लिए इनका यंत्र बनाकर उसका अभिषेक, पूजन, जप आदि करना है चाहिये और व्रतोपवास आदिके द्वारा इसकी सेवा आराधना करनी चाहिये।
आगे यंत्र बनानेकी विधि लिखते हैं। सबसे पहले मध्य में गोलाकार कणिका लिखना चाहिये । उसमें । सिद्धचक्रका मूलबीज 'हो' लिखना चाहिये । फिर उसके ऊपर नीचे ब्रह्ममाया बीजसहित रत्नत्रयको चतुर्यो । विभक्ति सहित नमः शम्बके साथ लिखना चाहिये । वह मंत्र यह है 'ॐ ह्रीं सम्यग्दर्शनशानचारित्रेभ्यो नमः । फिर उसके बाद तीन वलय देकर आठ बलका कमल लिखना चाहिये। उनमेंसे सम्यग्दर्शनके आठों अंगोंमेसे । प्रत्येक अंगको अक्षरमणि और शक्तिबीज कर सहित चतुर्थी विभक्ति सहित नमः शम्बके साथ लिखना चाहिये।
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