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सागर [ २ ]
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॥ यथा-पहले दल में 'ॐ ह्रीं निःशकितांगाय नमः' दूसरेमें "ह्रीं निकाक्षितांगाय नमः" तीसरेमें 'ॐ ह्रीं ।
निविचिकित्सांगाय नमः' चौथेमें 'ॐ ह्रीं अमूढदृष्ट्यांगाय नमः' पांचवेमें 'ॐ ह्रीं उपगृहनांगाय नमः' छठेमें 'ॐ ह्रीं स्थितिकरणांगाय नमः' सातमें 'ॐ ह्रीं वात्सल्यांगाय नमः' आठवम 'ॐ ही प्रभावनांगाय नमः लिखना चाहिये । इस प्रकार आठों बल पूर्ण कर देने चाहिये।
फिर बलप देकर आठ दलका कमल बनाना चाहिये। उनमें वेद माया बोजपूर्वक सम्यग्ज्ञानके आठों अंगोंको चतुर्थी विभक्ति और नमः शम्बके साथ अलग-अलग लिखना चाहिये। यथा--पहले बलमें 'ॐ ह्रीं व्यंजनव्यंजिताय नमः' दूसरेमें 'ॐ ह्रीं अर्थसमग्राय नमः' तीसरेमें 'ॐ ह्रीं तबुभयसमग्राय नमः' चौथेमें ! ह्रीं कालाध्ययन पवित्राय नम:' पाचवेंमें 'ॐ ह्रीं उपधानोपहिताय नमः' छठे में 'ॐ ह्रीं विनवलब्धिप्रभावाय नमः' सातवेमें 'ॐ ह्रीं गुर्वाग्रनिन्ह वसमवाय नमः' आठ में 'ॐ ह्रीं आननिमुद्रिताय नमः' लिनना चाहिये। इस प्रकार दूसरा कमल भो भर देना चाहिये।
तवनन्तर वलय देकर तेरह वलका कमल बनाना चाहिये । उसमें तार और मायाबीजपूर्वक चारित्रके तेरह अंगोंको अलग चतुर्थी विभक्ति और नमः शब्दके साथ लिखना चाहिये । यथा--पहले वलमें 'ॐ ह्रौं। अहिंसामहावताय नमः' दूसरेमें 'ॐ ह्री सत्यायमहाव्रताय नमः' तीसरेमें 'ॐ ह्रौ अौर्यमहावताय नमः' चौथेमें | 'ॐ ह्रीं ब्रह्मचर्यमहावताय नमः' पांचवेंमें 'ॐ ह्रीं परिग्रहत्यागमहानताय नमः' छठेमें 'ॐ ह्रीं ईसिमितये । नमः' सात 'ओं ह्रीं भाषासमितये नमः' आठमें 'ओं ह्रीं एषणासमितये नमः' नौवे में 'ओं ह्रीं आदाननिक्षेपणसमितये नमः' वशāमें 'ओं ह्रौं प्रतिष्ठापनसमितये नमः' ग्यारहवेमें 'ओं हो मनोमुप्तये नमः' बारहवें में 'ओं ह्रीं बचोगुप्तये नम:' तेरहवे में 'ओं ह्रीं कायगुप्तये नमः' लिखना चाहिये । इस प्रकार लिखकर सब कमल पूर्ण कर देना चाहिये । फिर तीन बलय देकर भूमंडल लिखना चाहिये । इस प्रकार यन्त्र बनाकर आराषन पूजा, जप आदि करना चाहिये । रत्नत्रयचक्र-यंत्र पृष्ठ २२३ ( क ) में देखो।
इनके सिवाय और भी अनेक यन्त्र हैं सो भगववेकसंधिकृत जिनसंहिता, पूजासार, जिनयशकल्प, विद्यानुवाद, णमोकार करूप, वसुनन्विकृत प्रतिष्ठापाठ, त्रिवर्णावार, शान्तिचक्र और रलाकर आवि शास्त्रोंसे । जान लेना चाहिये । यहाँ हमने थोड़ोसो आम्नाय बतलानेके लिये ऊपर लिखे शास्त्रोंसे पोड़ासा लिखा है।
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