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त्यागियोंको वसतिका मठ आविका दान देना चाहिये । इसके सिवाय अपने घर आवि समस्त परिग्रहका त्याग ।
कर मुनिव्रत धारण करना भी उत्तम त्याग है। पर्यासागर
नौवां धर्म उसम आकिञ्चन्य है । वा प्रकारका बाह्य परिग्रह और चौवह प्रकारके अन्तरंग परिग्रह [ २२१ ] इस प्रकार इन चौबीस प्रकारके परिग्रहका त्याग कर निम्रन्थ अवस्थाका धारण करना सो उत्तम आकिञ्चन्य
धर्म है।
शर्मा धर्व उतना हगा है। पन्नों अतिचारोंको छोड़कर तथा शोलको नौ बाड़ और अठारह हजार भेवसहित शीलवतको पालन करना, पूर्ण ब्रह्मचर्य पालन करना, आत्मामें लीन रहना सो उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म है।
इस प्रकार दश धर्म हैं । इन सबके साथ उत्तम शब्द लगा हुआ है ( वह सम्यग्दर्शन के लिये है, ये धर्म सम्यग्दर्शनपूर्वक होनेसे हो उत्सम धर्म कहलाते हैं ) मुनि, आपिका, श्रावक-श्राधिका इन सबको अच्छी तरह इन धर्मोको यथायोग्य रीतिसे पालन करना चाहिये ।
अब आगे इसके यंत्रको रचना लिखते हैं-सबसे पहले मध्यमें कणिका गोलाकार बनाना चाहिये । उसमें सिद्धचक्रला मूल बीज 'ह्रीं' लिखना चाहिये । उसके नीचे ब्रह्म माया बीज सहित प्रथम अंगके नामको
आदि लेकर चतर्थी विभक्ति और नमः शब्दके साथ लिखना चाहिये। वह मंत्र इस प्रकार है "ॐ ह्रीं उत्तमक्षमाविवशालाक्षणिकधर्मागाय नमः" फिर उसके आगे तीन बलय देकर उसके बाहर दश दलका कमल लिखना चाहिये। उन बलोंमें अमनामसे प्रणव शक्ति बीजादि सहित एक-एक अंगको चतुर्थी विभक्तिसहित तथा नमः शम्दसहित लिखना चाहिये । पूर्व दिशासे प्रारम्भ कर बायीं ओरको लिखते जाना चाहिये । वे मन्त्र इस प्रकार हैं। पहले बलमें ओं ह्रीं उत्तमक्षमाधर्मागाय नमः दूसरेमें ओं ह्रीं उत्तममार्दवधांगाय नमः तीसरेमें ओं ह्रीं । उत्तमआर्जवधांगाय नमः चौथेमें ओं ह्रीं उत्तमशौचषर्मागाय नमः पाँचमें ओं ह्रीं उत्तमसत्यधर्मागाय नमः छठेमें ओं ह्रीं उत्तमसंयमधर्मागाय नमः सातवेंमें ओं ह्रीं उत्तमतपोधांगाय नमः आठवेंमें ओं ह्रीं उत्तमत्याग-1 धमांगाय नमः नौवेमें ओं हों उत्तमाकिञ्चन्यधर्मागाय नमः और दशमें ओं ह्रीं उत्तमब्रह्मचर्यधर्मागाय नमः लिखना चाहिये। फिर तोन वलय कर भू-मण्डल आदि पहले लिखे अनुसार लिखना चाहिये और फिर उसका । आराधन करना चाहिये । मूलमनसे समुच्चयरूप आह्वान, स्थापन, सम्निषीकरण करना चाहिये फिर पूजा-अप