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________________ मगर २४ । उन्तालोसमें ॐ ह्रीं है गमो कवि बलोणं । चालीसवेमें ॐहीं है पमो कायवलीणं ।' कतालीसमें हों। हणमो खीरवसी । व्यालीसमें ॐ ह्रीं हं णमो सप्पिसबीणं । सेतालीसवेमें ॐ ह्रीं हं णमो महुरसबीणं ।। चवालीसमें ॐ ह्रीं है णमो समयसबोणं । पैतालीसमें ॐ ह्रीं हं णमो अक्खीणमहाणसाग । छयालीसमें ॐ ह्रीं हूँ नमो लोए सव्व सिद्धामदगाणं । सैतालीसमें ॐ ह्रीं हैं णमो वढ्डमाणाणं । अड़तालीसमें ॐ ह्रीं हणमो भगवविवतमाण बुद्धिरिसीणं लिखना चाहिये। इस प्रकार नीचेके चौवीस दल भरकर पूर्ण करना चाहिये। ! तदनन्तर वलपके बाहर माया बीज अषः क्रौं बीज लिखकर क्षितिमण्डल युक्त करना चाहिये। इस यंत्रको 'हो ही हं. हौं हः अहं अ सि आ उ सा अप्रतिचक्रे फट विचक्राय ह्रीं हो । स्वाहा' इस मूल मंत्रसे पूजन तथा जप करना चाहिये। पहले जो अड़तालीस ऋद्धियों सहित ऋषियोंके नाम लिखे हैं उनका उच्चारण नमस्कारपूर्वक करके पूजनके अन्तमें जपना चाहिये।। जो मनुष्य इस गणधरवलयको तीनों काल आराधन करते हैं उनके गये हुए धनधान्य, परिग्रह आदि सब पीछे मिल जाते हैं। इससे अनेक प्रकारका पुण्यानव होता है, पापोंका आस्रव रुकता है तथा पापकर्मोकी निर्जरा होती है । अनेक प्रकारके रोगोंसे होनेवाली व्याधियाँ तथा भूत, प्रेत, डाकिनी, शाकिनी, ग्रह, राक्षस, पिशाच आविसे उत्पन्न हुए उपद्रव तथा स्थावर जंगमके भेवसे वोनों प्रकारके विषयोंसे उत्पन्न हुए उपद्रव सब 1 नष्ट हो जाते हैं। इसके सिवाय होनहार शुभ वा अशुभ सब स्वप्नमें दिखाई देता है। तथा अन्त समयमें # आराधन सहित समाधिमरण होता है । इस प्रकार इसका फल है । सो हो पूजासारमें लिखा है। मन्त्रेणानेन सदा त्रिसमयगतमर्थमायाति । और भी लिखा है नित्यं यो गणभृन्मन्त्रं विशुद्धया.....
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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