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चर्चासागर
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अत्र मम हिता भव भव षष्ट। यह मंत्र पढ़कर तथा पुष्प चढ़ाकर अनुक्रमले आह्वान, स्थापन, सन्निधिकरण करना चाहिये । फिर अलग-अलग मंत्रोंसे पूजन करना चाहिए। अलग-अलग मंत्र ये हैं-
बल अमृतं यज्ञभागं च
ओ ह्रीं आदित्याय स्वाहा पूर्वविशि, ओं ह्रीं सोमाय स्वाहा आग्नेय दिशि, ओं ह्रीं भौमाय स्वाहा नैऋत्यां ह्रीं बृहस्पतये स्वाहा पश्चिमे, ओं ह्रीं शुक्राय स्वाहा वायव्यां ओं ह्रीं शनैश्चराय स्वाहा उत्तरे, ओं ह्रीं राहवे स्वाहा ईशान्यां ओं ह्रीं केतवे स्वाहा पूर्व दिशि । इदं अध्यं पा यजामहे यजामहे प्रतिगृह्यतां प्रतिगृह्यतां स्वाहा । इस प्रकार पूजन करना चाहिये। यह दिकपालोंका पूजन मंत्रके आगे सात धान्योंके नौ कोठे बनाकर अथवा तो कोठेके लिखे मंत्रोंसे अलग पूजा करनी चाहिये ।
यह दिक्पाल पूजन है । मण्डल बनाकर ऊपर
फिर मंत्र के प्रागभाग मे ( पूर्वको ओर ) अनाबूत पक्षको पूजा करनी चाहिये। उसका मंत्र यह है 'ओं ह्रीं आं क्रों हे अनावृत अत्रागच्छागच्छ संवौषट् अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः । अत्र मम सन्निहितो भव भव थव । इवं अध्यं गृहाण गृहाण स्वाहा । इस प्रकार अर्ध चढ़ाकर " यस्यार्थं क्रियते पूजा" इत्यादि श्लोक पढ़कर जलधारा पुष्पांजलि क्षेपण करना चाहिये । इसको यक्षार्धन करते हैं ।
इस प्रकार महामंत्रकी आराधना कर मूल विद्याका एकसौ आठ बार जप करना चाहिये । वह मंत्र यह है । "ओं ह्रां ह्रीं हूं ह्रीं हः असि आ उ सा अस्माकं सर्वोपद्रवशांति कुरु कुरु स्वाहा ।" इस मंत्रका जातिपुहपोंसे ( चमेली के फूलोंसे ) अथवा अन्य सुगंधित पुष्पोंसे वा देवपुष्प लवंगसे पहले कहे हुए यंत्र के ऊपर एकसौ आठ बार जप करना चाहिये। फिर
प्रातिहार्यान् जिनान् सिद्धान् गुणैः सूरीन् सुमात्रिभिः । पाठकान् विनयैः साधन् योगांगेश्चाष्टभिः स्तुवे ॥ मंणुयणा इंदसुरधरियछत्तत्तया । पंच कल्लाणसुक्खावलीपत्तया ||
जयमाला
१ ॥
मया इंदसुरधरियछत्तत्तया, पंचकल्याण सुक्खावलो पत्तया । दंसणं णाण झाणं अनंतं बलं, ते जिणा दितु अहं वरं मंगलं ॥ जेहि झाणग्गिवाणेहि अइथट्ठयं जन्मजरमरणणवरतयं ददयं । जेहि पत्तं सिवं वासयं ठाणर्य, ते महा दिंतु सिद्धा वर णाणयं ॥
२ ॥
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