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________________ सागर ॐ ह्रीं बीपेन्द्राय स्वाहा । ॐ ह्रीं विगिन्द्राय स्वाहा ।हीं किन्नरेन्द्राय स्वाहा । ह्रीं किंपुरुषेन्द्राय स्वाहा।। ॐ ह्रीं महोरगेन्द्राय स्वाहा । ॐ ह्रीं गंधर्वेन्द्राय स्वाहा । ॐ ह्रीं यक्षेन्द्राय स्वाहा । ॐ ह्रौं राक्षसेन्द्राय स्वाहा। ॐ ह्रीं भूतेन्द्राय स्वाहा । ॐ ह्रीं पिशाचेन्द्राय स्वाहा । ॐ ह्रीं चंद्रेन्द्राय स्वाहा । ॐ ह्रीं आवित्येन्द्राय स्वाहा । ॐ ह्रीं सौधर्मेन्द्राय स्वाहा । ॐ ह्रौं ईशानेन्द्राय स्वाहा । ॐ ह्रीं सानत्कुमारेन्द्राय स्वाहा । ॐ ह्रीं माहेन्द्राय । स्वाहा । ॐ ह्रीं ब्रह्मेन्त्राय स्वाहा । ॐ ह्रीं लांतवेन्द्राय स्वाहा । ॐ ह्रीं शुक्रेन्द्राय स्वाहा । ॐ ह्रीं शतारेन्द्राय स्थाहा । ॐ ह्रीं आनतेन्द्राय स्वाहा । ॐ ह्रीं प्राणतेन्द्राय स्वाहा । ॐ ह्रीं आरणेन्द्राय स्वाहा । ॐ हों । तेन्द्राय स्वाहा । ॐ भूर्भुवः स्व स्वाहा स्वधा इवं अध्यं चरु अमृतं स्वस्तिकं यज्ञभागं गृहीत गृहोत स्वाहा। । इस प्रकार मंत्रपूर्वक अर्धाविक तथ्य चढ़ाना चाहिये । तथा 'यस्यार्थ क्रियते पूजा' इत्यादि श्लोक पढ़कर जलधारा तथा पुष्पाञ्जलि क्षेपण करना चाहिये । तदनन्तर उस मण्डलके वाहर पूर्व, दक्षिण, पश्चिम, उत्तर चारों दिशाओंमेंसे एक-एक विशामें गोमुखाविक छ:-छः यक्ष हैं सब मिलकर चौबीस यक्ष है तथा वे वन जो त्रिशूलाकार हैं उनमें स्थित हैं उनकी पूजन करनी चाहिये । उनके मंत्र ये हैंम ॐ ह्रीं गोमुख महायक्ष त्रिमुख यक्षेश्वर तुंबुरु कुसुम वरनंदि विजय अजित ब्रह्मेश्वर कुमार षण्मुख पाताल किन्नर किंपुरुष गरुड़ गंधर्व महेन्द्र कुबेर वरुण विद्युतप्रभ साह धरणेन्द्र मातंग इति चतुर्विशति यो न्द्रगणाः आयुधवाहनयुवतिसहिता आगच्छस आगच्छत संवौषट् । अत्र तिष्ठत तिष्ठत ठः ठः । अत्र मम सन्नि। हिता भवत भवत वषट । इस प्रकार मन्त्र पढ़कर आहवान, स्थापन, सन्निधिकरण करना चाहिये। फिर ॐ लों गोमुखाय स्वाहा । ॐ ह्रीं महायक्षाय स्वाहा । ॐ ह्रीं त्रिमुखाय स्वाहा । ॐ ह्रीं यक्षेश्वराय । स्वाहा । ॐ ह्रीं तुंबुरये स्वाहा । ॐ ह्रीं कुसुमाय स्वाहा । ॐ ह्रीं वरनन्दिने स्वाहा । ॐ ह्रीं विजयाय ई स्वाहा । ओं ह्रीं अजिताय स्वाहा । ओं ह्रीं ब्रह्म श्वराय स्वाहा । ओं ह्रीं कुमाराय स्वाहा । ओं ह्रीं षण्मुखाय स्वाहा । 'ओं ह्रीं पातालाय स्वाहा । ओं ह्रीं किन्नराय स्वाहा । 'ओं ह्रीं किंपुरुषाय स्वाहा । 'ओं हों गरुड़ाय स्वाहा । ओं ह्रीं गंधर्वाय स्वाहा । ओं ह्रीं महेंद्राय स्वाहा । ओं ह्रीं कुबेराय स्वाहा । ओं ह्रीं वरुणाय स्वाहा। | ओं ह्रीं विद्युत्प्रभाय स्वाहा । ओं ह्रीं सर्वाहाय स्वाहा । ओं ह्रीं धरणेन्द्राय स्वाहा । ओं ह्रीं मातंगाय स्वाहा।।
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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