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चर्चासागर [ १८८ ]
# का पूजन करना चाहिये । यथा-ॐ ह्रीं चक्रेश्वरि रोहिणि प्रज्ञप्ति वनश्रृंखले बचपुरुषबत्ते मनोवेगे कालिक
महाकालि ज्वालामालिनि मानवि गौरि गांधारि वैरोटि अनन्तमति मानसि महामानसि जये विजये अपराजिते । बहुरूपिणि चामुण्डे कुष्मांडनि पद्मावति सिद्धायिनि सर्वा घेव्यः स्वायुधवाहनसमेताः सचिह्ना अन्न आगच्छत आगच्छत संवौषट् । अत्र तिष्ठत तिष्ठत ठः ठः। अत्र मम सन्निहिता भवत भवत वषट । इस मन्त्रको पढ़कर तथा पुष्प चढ़ाकर अनुक्रमसे आह्वान, स्थापन, सन्निधिकरण करना चाहिये। तथा फिर-ॐ ह्रीं चक्रे॥ इदरीदेव्यै स्वाहा १ ॐ ही रोहिण्यै स्वाहा २ ॐ ह्रीं प्रज्ञप्त्यै स्वाहा ३ ॐ ह्रीं बनशृङ्खलाय स्वाहा ४ ॐ
ह्री पुरुषदत्तायै स्वाहा ५ ॐ ह्रीं मनोवेगाय स्वाहा ६ ॐ ह्रीं काल्यै स्वाहा ७ ॐ ह्रीं महाकाल्यै स्वाहा - ॐ
ह्री ज्वालामालिन्यै स्वाहा ९ ॐ ह्रीं मानव्यै स्वाहा १० ॐ ह्रौं गौर्यै स्वाहा ११ ॐ ह्रीं गांधायें स्वाहा १२ ॥ ॐ ह्रीं वैरोटपै स्थाहा १३ ॐ ह्रीं अनन्तम स्वाहा १४ ही मानतीयव्ये स्थाहा १५ ॐ ह्रीं महामानसीवेव्यै स्वाहा १६ ॐ ह्रीं जयायै स्वाहा १७ ॐ ह्रीं विजयायै स्वाहा १८ ॐ ह्रीं अपराजितायै स्वाहा १९ ॐ ह्री बन्नुरूपिण्यै स्वाहा २० ॐ हीं चामुण्डायै स्वाहा २१ ॐ ह्रीं कुष्मारिन्यै स्वाहा २२ ॐ ह्री पावत्यै स्वाहा २३ ॐ ह्री सिद्धायन्यै स्वाहा इवं अध्यं चरु अमृतं बलिं यज्ञभागं च यजामहे यजामहे प्रतिगृह्यतां प्रतिगृह्यतां स्वाहा । इस प्रकार मन्त्रपूर्वक अर्धादिक द्रव्य चढ़ाना चाहिये और 'यस्यायं क्रियते पूजा' इत्यादि श्लोक । पढ़कर जलधारा तथा पुष्पाञ्जलि क्षेपण करना चाहिये ।
तदनन्तर उन चौबीस पत्रोंके बाहर बत्तीस पत्रोंपर स्थित असुरेन्द्रादिक बत्तं स इन्द्रों की पूजन करना चाहिये । यथा-ॐ ह्रीं असुरेन्द्रनामेन्द्र विद्युदिन्द्र सुपर्णेन्द्र अग्नीन्द्र वातेन्द्र स्तनितेन्द्र उदधीन्द्र द्वोपेन्द्र दिगोन्द्र किन्नरेन्द्र किंपुरुषेन्द्र महोरगेन्द्र गन्धर्वेन्द्र यक्षेन्द्र राक्षनेन्द्र भूतेन्द्र पिशाचेंन्द्र चन्द्रादित्य सौधर्मेन्द्र ईशानेन्द्र सानत्कुमारेन्द्र माहेन्द्र ब्रह्मेन्द्र लातवेन्द्र शुकेन्द्र शतारेन्द्र आनतेन्द्र प्राणतेन्द्र आरणेन्द्र अरयुतेन्द्र सर्वे इन्द्रा यानायुधवाहनयुपतिजनैः साद्धं आगच्छत आगच्छत संवौषट् । अत्र तिष्ठत तिष्ठत ठः ठः । अत्र मम सन्निहिता भवत भवत वषट् । इस मन्त्रको पड़कर अनुक्रमले आहवान, स्थापन, सग्निधिकरण करना चाहिये। फिर ! ॐ ह्रीं असुरेन्द्राय स्वाहा । ॐ ह्रीं नागेन्द्राय स्वाहा । ॐ ही विधुदिन्द्राय स्वाहा । ॐ हों सुपर्णेन्द्राय स्वाहा ।
ॐ ह्रीं अग्नीन्द्राय स्वाहा । ॐ ह्रीं वान्द्राय स्वाहा । ॐ ह्रीं स्तनितेन्द्राय स्वाहा । ॐ ह्रीं उबधीन्द्राय स्वाहा।।