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पर्चासागर [ १८७ ]
फिर उन अष्ट बलोंके बाहर स्थित जयाविक आठों देवियोंका अनुक्रमसे पूजन करना चाहिये। पहले तो उनका आह्वान, स्थापन, सन्निषिकरण करना चाहिये। उसका मन्त्र यह है - ॐ ह्रीं जये विजये अि अपराजिते जंभे मोहे स्तम्भे स्तम्भिन इति अष्ट वेव्य स्वायुधवाहनसमेताः सचिह्नाः अत्र आगच्छत आगच्छत संगोषट । अत्र तिष्ठत तिष्ठत ठः ठः । अत्र मम सन्निहिता भवत भवत वषट' इस मन्त्रको पढ़कर सबका आह्वान, स्थापन, सन्निधिकरण करना चाहिये । फिर ॐ ह्रीं जयायै स्वाहा, ॐ ह्रीं विजयायें स्वाहा, ॐ ह्रीं अजितायै स्वाहा, ॐ ह्रीं अपराजितायै स्वाहा, ॐ ह्रीं जंभायै स्वाहा, ॐ ह्रीं मोहाय स्वाहा, ॐ ह्रीं स्तंभायै स्वाहा, ॐ ह्रीं स्तम्भिन्यै स्वाहा । इदं अध्यं चरु अमृतं स्वस्तिकं च यज्ञभागं गृहीत गृहोत स्वाहा' इन मंत्रोंसे आठ दलोंपर स्थित आठों जयादिक देवियोंकी पूजा करनी चाहिये ।
तदनन्तर उन आठ वलोंके बाहर सोलह दलोंपर स्थित रोहिणी आदि सोलह विद्या देवताओंकी अनुक्रमसे पूजन करना चाहिये। यथा - ॐ ह्रीं रोहिणि प्रज्ञप्ति वज्रशृंखले वस्त्रांकुशे अप्रतिचक्रे पुरुषदक्षे काल महाकालि गांधारि गौरि ज्वालामालिनि वैरोटि अच्युते अपराजिते मानसि महामानसि इति षोडश देव्यः स्वायुधवाहन समेताः सचिह्नाः अत्रागच्छतागच्छत संवौषट् । अत्र तिष्ठत तिष्ठत ठः ठः । अत्र मम सन्निहिता भवत भवत वषट्, इस मन्त्रको पढ़कर तथा पुष्प चढ़ाकर अनुक्रमसे आह्वान, स्थापन, सन्निधिकरण करना चाहिये । तथा फिर ॐ ह्रीं रोहिण्यै स्वाहा ॥ १ ॥ ॐ ह्रों प्रज्ञप्त्यै स्वाहा ॥ २ ॥ ॐ ह्रीं वज्रशृंख लायै स्वाहा ॥ ३ ॥ ॐ ह्रीं वांकुशायै स्वाहा ॥ ४ ॥ ॐ ह्रीं अप्रतिचक्रायै स्वाहा ॥ ५ ॥ ॐ ह्रीं पुरुषदक्षायै स्वाहा ।। ६ ।। ॐ ह्रीं काल्यै स्वाहा ॥ ७ ॥ ॐ ह्रीं महाकाल्यै स्वाहा ॥ ८ ॥ ॐ ह्रीं गांधायें स्वाहा ॥ ९ ॥ ॐ ह्रीं गौयँ स्वाहा ॥ १० ॥ ॐ ह्रों ज्वालामालिन्यै स्वाहा ॥ ११ ॥ ॐ ह्रीं वैरोटयै स्वाहा ।। १२ ।। ॐ ह्रीं अच्युतायै स्वाहा ।। १३ ।। ॐ ह्रीं अपराजितायै स्वाहा ॥ १४ ॥ ॐ ह्रीं मानसी देव्यं स्वाहा ।। १५ ।। ॐ ह्रीं महामानसो देव्यै स्वाहा ॥ १६ ॥ इदं अध्यं पाद्यं चरु बलि यज्ञभागं च यजामहे यजामहे प्रतिगृह्यतां प्रतिगृह्यतां स्वाहा। इस प्रकार मन्त्रपूर्वक अर्घादिक द्रव्य चढ़ाना चाहिये और " यस्यार्थं क्रियते पूजा" इत्यादि श्लोक पढ़कर जलधारा तथा पुहरांजलि क्षेपण करना चाहिये ।
तदनन्तर उन सोलह पत्रोंके बाहर चौबीस पत्रोंपर स्थित चक्रेश्वरी आदि चौबीस जिनशासन देवियों
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