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________________ बसागर १८४] लम्बी खड़ी करनी चाहिए। फिर दोनों अनामिका ( सबसे छोटी ) उँगलियोंको मिली हुई खड़ी कर विलोम रूप ( तले ऊपर ) कर लेना चाहिए। फिर दोनों हाथोंकी मध्यमा ( बोचकी ) उँगलियोंको तर्जनीसे ( अँगूठेकी पासवाली उँगलोसे ) दाबकर तथा कनिष्ठा ( सबसे छोटीकी पासवाली उँगली ) को अँगूठेसे दाबकर खड़ी रखना चाहिए इस प्रकार करनेसे पाँच उँगलियाँ खड़ी हुई दिखाई देंगी और पांच दबी हुई अदृश्य रूप होंगी इसीको पंचगुरुमुद्रा कहते हैं यह मुद्रा पंच परमेष्ठीका स्मरण करनेके लिए की जाती है। इस पंच गुरुमुद्राको धारण करते समय हथेलोमें थोड़ा सा जल और पाँचों उंगलियोंको दाबते समय एक-एक पुष्प रख लेना चाहिए फिर ॐ ह्रीं असि आ उ सा पंचगुरुमुद्राधारणं करोमि स्वाहा' यह मन्त्र पढ़ लेना चाहिए फिर ॐ वृषभादि दिव्यवेहाय सद्योजाताय महाप्रज्ञाय अनंतचतुष्टयाय परमसुखप्रतिष्ठिताय निर्मलाय स्वयंभुवे अजरामर परमपदप्राप्ताय चतुर्मुखपरमेष्ठिने महते त्रिलोकनाथाय त्रैलोक्यप्रस्थानाय अविष्टदिव्यनागपूजिताय परमपदाय ममात्र सन्निहिताय स्वाहा' यह मन्त्र पढ़कर उस पंचगुरुमुद्राको अपने मस्तक पर चढ़ाना चाहिए। तथा वहीं पर जल पुष्पोंको छोड़कर गुरुमुद्रा छोड़ देनी चाहिये और फिर नमस्कार कर लेना चाहिये । तदनंतर पाद्य दान करना चाहिये अर्थात् एक अर्ध देना चाहिये। फिर 'ॐ ह्रीं स्वक्ष्वीं यं मंहं सं तं पं ब्रां द्रों हंसः स्वाहा' यह मन्त्र पढ़कर आचमनीमें (एक छोटीसी घम चोमें) जल भरकर भगवानके ऊपर तीन बार जल क्षेपण करना चाहिये। यह भगवानका आचमन विधान है । फिर 'ॐ ह्रीं क्रौं समस्तनीराजनदव्यैर्नीराजनं करोमि अस्माकं दुरितमपनयतु भगवान् ॐ नमो भगवते अ सि आ उ सा स्वाहा' यह मन्त्र पढ़कर आरती उतारनेके पात्रसे नीराजनावतारण करना चाहिये अर्थात् आरती उतारनी चाहिये। फिर 'ॐ ह्रीं आं क्रौं प्रसस्त वर्ण सर्वलक्षणसंपूर्ण स्वायुधवाहन युवतीसचिह्नसहित इन्द्राग्नि यम, नैऋत, वरुण, पवन, कुबेरेशान शेषशीतांशु वश विक्वाल देव अत्र आगच्छ आगच्छ संवौषट् अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट, ॐ आं क्रों चढ़ाते हैं अर्थात् इन पांचों जगह पंचपरमेष्टोकी स्थापना करते हैं पुष्प झेपण करते हैं और जल सिंचन करते हैं । इस प्रकार अपने शरीरके उत्तम भागमें पंच परमेष्ठीको स्थापना करनेसे आत्मामें पंच परमेष्ठीके गुणोंकी दृढ़ भावना उत्पन्न होती है, दृढ़ संस्कार होता है। जिसकी वासना शरीर के संबंध पर्यंत वैसी हो दृढ़ बनी रहती है। १. एक थाली में दही, अक्षत, लाजा, ( खोलें ) भस्म, गोमट, पिण्ड, पुष्प, दूर्वा, स्वस्तिक और चार बत्तीके जलते हुए दीपकको लेकर भगवान की आरती उतारनी चाहिये । [ १८४
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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