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लों वश विक्पालाय इदं अयं पाधं गंधं पुष्पं दोपं धूपं चरु वलि स्वस्तिकमक्षतं यज्ञभाग च यजामहे यजामहे
प्रतिगृहातां प्रतिगृह्यतामिति स्वाहा' यह मन्त्र पढ़कर अलग-अलग इन्द्रादिक दश विषपालोंका स्थापन करना सागर चाहिये तथा एक अर्घ देकर सबको प्रसन्न करना चाहिये । फिर १८५ 1 यस्यार्थं क्रियते पूजा स प्रीतो नित्यमस्तु ये । शांतिमे पौष्टिकं चैव सर्वकार्येषु सिद्धदः॥
___ इस श्लोकको पढ़कर जलधारा तथा पुष्पांजणि पार करना ताहि ।
फिर 'ओं ह्रीं स्वस्तये कलशोद्धरणं करोमि स्वाहा' यह मन्त्र पढ़कर शुद्ध जलसे भरे हुए कलशको अपने दोनों हाथोंसे उठाकर ऊपर कर लेना चाहिये। फिर ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहं वं मं हं सं तं वं में हं हं सं सं संत पंझझक्ष्यों क्ष्वी वांद्राद्री बोंद्रावय द्रावय नमोऽहते भगवते पवित्रतरजलेन अभिषेधयामि स्वाहा' यह मन्त्र पढ़कर भगवानके मस्तकपर उन कलशोंसे शुद्ध जलको धारा देनी चाहिये। इसको शुद्धोदक स्नान कहते हैं फिर इसी मन्त्रको पढ़कर पवित्रतर जलेनकी जगह 'पवित्रतर इक्षरसेन जिनमभिषेचयामि स्वाहा' यह पहकर इक्षुरसको धारा देनी चाहिये । ईख गन्ना वा सांठेका रस अथवा जल में थोड़ा गुड़ वा शक्कर वा बूरा मिलाकर उस रस वा मीठे जलसे अभिषेक करना चाहिये। यह इक्षुरसस्नान कहलाता है। फिर 'ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं
वि ऊपरके मन्त्रको पहकर तथा 'पवित्रतरजलेन' की जगह 'पवित्रतर घतेन जिनमभिषेचयामि स्वाहा' पढ़कर धोका अभिषेक करना चाहिये। इसको घतस्नान कहते हैं। फिर ऊपरका ही मन्त्र पढ़कर 'पवित्रतरजलेन' को जगह 'पविनतरदुग्धेन जिनमभिषेचयामि स्वाहा' पढ़कर दूधसे अभिषेक करना चाहिये । यह बुग्धस्नान कहलाता है। फिर 'ॐ ह्रीं श्रीं क्लों ऐं आहे' इत्यादि ऊपरका मन्त्र पढ़कर 'पवित्रतरजलेन' की जगह 'पवित्रतर दध्ना जिनमभिषेच्यामि स्वाहा' पढ़कर भगवानके ऊपर दहीको धारा देनी चाहिये । इसको दधि स्नपन कहते हैं । फिर ॐ ह्रीं श्रों इत्यादि ऊपरका मन्त्र पढ़कर तथा 'पवित्रतरजलेन' की जगह 'पवित्रतर सर्वाधिना जिनमभिषेधयामि स्वाहा' यह पढ़कर भगवानका सौषधिसे अभिषेक करना चा सौषधिमें केसर, चन्दन, कपूर आदि सुगन्धित पदार्थ डालने चाहिये यह सौषधि स्नान है। फिर 'ॐ नमोऽहते भगवते कलोललालवंगादिचूर्णेजिनागमुद्वर्तयामि स्वाहा' यह मन्त्र पढ़कर ककोल, इलायची, लौंग तथा आदि शब्बसे श्रीखण्ड, कपूर, केशर, अगर, तगर, देववारु, कूट, जातिफल आदि सुगन्धित वस्तुओंका चूर्ण ।
PATREATमियामरम्यान्मारकाबाट