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________________ । यह मन्त्र पढ़कर उस सिंहासनको मन्त्रसे आगे पूर्वकी ओर मुखकर अथवा उत्तरको ओर मुखकर स्थापन करना। चाहिये । यह सिंहासन अथवा पोठके स्थापन करनेको विधि है। फिर ॐ ह्रीं अहं पीठं प्रक्षालयामि स्वाहा' सिागर यह मन्त्र पढ़कर उस सिंहासनको जलसे प्रक्षालन करना चाहिये । फिर 'ॐ ह्रीं वर्षमथनाय नमः' यह मन्त्र। १८३ ] पढ़कर उस सिंहासनमें दाभ रखना चाहिये। फिर 'ॐ ह्रीं सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रेभ्यः स्वाहाः' यह मन्त्र पढ़ । कर जल, गंध,अक्षताविफसे उस सिंहासनका पूजन करना चाहिये। फिर 'ॐ ह्रीं श्रीं श्रीकारं लेखयामि । स्वाहाः' यह मन्त्र पढ़कर उस सिंहासन पर केशर अथवा चंदनसे श्रीः इस प्रकार श्रीकार लिखना चाहिये । फिर ह्रीं श्रीं श्रीयंत्र पूजयामि स्वाहा' यह मन्त्र पढ़कर जल, गंध, अक्षत, पुष्प आदिसे उस श्री यंत्रकी (लिखे हुए श्रीको पूरा करता मालिये। तदनन्तर स्वयं उठकर भगवानके सन्मुख खड़ा होकर हाथ जोड़ना चाहिये 'ॐ ह्रीं अहं धाने वषट' इस मन्त्रको पढ़कर भगवानके दोनों चरण कमलोंको अपने दोनों हाथोंसे स्पर्श करना चाहिये। उन हाथोंको मस्तक ललाट और नेत्रोंसे लगाना चाहिये और फिर वहाँसे प्रतिमाजीको उठाकर उस सिंहासन तक ले आता चाहिये फिर 'ॐ ह्रीं अहं श्रीवर्णे प्रतिमास्थापनं करोमि स्वाहा' यह मन्त्र पढ़कर गीत, नृत्य, बाजे, जय जयकार आदि बड़े उत्सवके साथ और बड़े हर्ष भावसे उस सिंहासन पर लिखे हुए श्रीवर्णपर श्रीप्रतिमाजोको स्थापन करना चाहिए। साथ हो एक सिद्धयंत्र स्थापन करना चाहिए फिर 'ॐ ह्रीं अहं श्रीपरमब्रह्मणे अर्घ निबंपा# मोति स्वाहा' यह मन्त्र पढ़कर भगवानको एक अर्घ चढ़ाना चाहिए फिर 'ॐ नमः परमब्रह्मणे श्रीपादप्रक्षालनं [ करोमि स्वाहा' यह मन्त्र पढ़कर भगवानके दोनों चरणोंका प्रक्षालन करना चाहिए। फिर ॐ ह्रां ह्रीं हं, ह्रौं हः अ सि उ सा एहि एहि संवौषट' यह मन्त्र पढ़कर आह्वानन करना चाहिए । फिर ॐ ह्रां ह्रीं हूं, हो। हः असि आ उ सा अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः' यह मन्त्र पढ़कर भगवानका स्थापन करना चाहिए। फिर ॐ ह्रां ह्रीं हूँ ह्रौं हः अ सि आ उ सा अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट यह मन्त्र पड़कर सन्निधिकरण करना। चाहिए । इस प्रकार अनुक्रमसे आह्वान स्थापन सन्निधिकरण कर गुरुमुद्रा धारण करना चाहिये। गुरु मुद्राका स्वरूप यह है-अपने दोनों हाथोंको सीधाकर दोनों हाथोंको आठों उँगलियोंको मिलाकर जिस प्रकार यह गुरुमुद्रा मस्तकपर चढ़ाते हैं उसी प्रकार मस्तक ललाट शिरके दाई और बांई ओर और पोछेकी ओर भी है तानाDAIRastralianatali न्मानाचारताव [ 1
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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