________________
वर्षासागर [ १८२]
पूजा करते समय धोती, दुपट्टा ये वी बस्त्र और यज्ञोपवीत वा जनेऊ धारण करना चाहिये । जनेऊ पहननेका मन्त्र यह है 'ॐ हीं सम्यग्दर्शनज्ञानचरित्रेभ्यो नमः अहं यज्ञोपवीतं धारयामि स्वाहा' इस मन्त्रसे जनेऊ पहनना चाहिये । तदनन्तर कर्ण, कुण्डल, मुकुट, मुद्रिका और कंकण आदि आभूषण धारण कर फिर
अपनेको इन्द्रकी कल्पना कर पंचामृताभिषेक पूर्वक पूजा करनी चाहिये। यदि ऊपर लिखे आभूषण पहननेका । योग न मिल सके तो भगवानके चरण-स्पशित चंदनसे तिलक करना चाहिये और उसी चंदनसे समस्त शरीरपर आभूषणोंका चित करना चाहिये । सो ही लिखा है-- ___ वस्त्रयुग्मं यज्ञसूत्रं कुण्डलं मुकुटं तथा । मुद्रिका कङ्कणं चेति कुर्याच्चंदनभूषणम् ।
पूजासागरमें भी लिखा है-- धृत्वा शेखरपट्टहारपटकप्रैवेयकालम्बकं केयूरांगदमध्यवन्धुरकटी सूत्रं च मुद्रांकितम् । चंचस्कुडलकर्णपूरममलं पाणिद्वये कंकणं मंजीरं कंटकं पतेर्जिनपतेः श्रीगंधमुद्रांकित्तम् ।
इस प्रकार विधि कर फिर भगवानका अभिषेक करनेके लिये पांडुशिलाको कल्पना कर श्रीपीठ स्थापन करना चाहिये । अभिषेकको विधि क्रमसे इस प्रकार है--
ॐ ह्रीं स्वस्तये कलशस्थापनं करोमि स्वाहा। यह मन्त्र पढ़कर कलश स्थापन करना चाहिये। फिर
ॐ ह्रां ह्रीं हूं, है हैं ह्रीं ह्रः असि आ उ सा पनादि षट्हुदा गंगासिंध्यादिचतुर्वशनदीमहातरित: जपनस्तत्र स्थिताः सफलदेवताः तीर्थोदकप्रदानेन प्रसीदन्तु इदं तीर्थजलं भवतु स्वाहा ।
यह मन्त्र पढ़कर कलशों में जल भरना चाहिये । 'ॐ ह्रीं नेत्राय संवौषट ' यह मन्त्र पढ़कर गंध, अक्षत, पुष्पादिकसे कलशोंकी पूजा करनी चाहिये । तथा दाभ दूर्घा पुष्पमाला और पाँच पल्लवोंसे ( पाँच पानसे या आमके पांच पत्तोंसे ) उन कलशोंको सुशोभित करना चाहिये। फिर सूत्रबन्धन करना चाहिये अर्थात् उन। कलशोंके चारों ओर रंगति सूत ( कलावा ) लपेटना चाहिये। तदनन्तर 'ॐ ह्रीं स्वस्तये पोठमारोपयामि । स्वाहा' यह मन्त्र पढ़कर सिंहासन उठाना चाहिये । और ॐ ह्रीं अहं क्षां ठः ठः श्रीपीठस्थापनं करोमि स्वाहा