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________________ सागर १८१ ] तथा दो अंगुल जोला को लिखा है। लथा हमको लापाई जार अंगुल करनी चाहिए। और वह इस प्रकार 4 बनाना चाहिए जो दोनों नेत्रोंको भौवोंके केशोंको स्पर्श करता रहे। तथा चक्राकार और त्रिवण्डाकार भी भौंवोंके केशोंको स्पर्श करता हुआ बनाना चाहिए । यह सब तिलकोंके आकारका निरूपण बतलाया । इन छहों प्रकारके तिलकोंमेंसे क्षत्रियोंको तो अर्द्ध चन्द्र तथा छत्रत्रयका तिलक करनेका अधिकार है। ब्राह्मणोंको मानस्तम्भ सिंहपीठ तथा छत्राकार तिलक करनेका अधिकार है। वैश्योंको मानस्तम्भ तथा छत्राकारका तिलक करना सुखदायक है और शूद्रोंको चक्राकार तथा अन्य लोगोंको त्रिदण्डाकार तिलक करनेकी आम्नाय है। गृहस्थोंको ललाटपर तिलकके ऊपर जिनपादाचित अक्षतोंको (जिन अक्षतोंसे भगवानके चरण कमलों को पूजा को है उन अक्षतोंको ) एक अंगुलमात्र लगाना चाहिये, और आसिकाके अक्षत अपने ललाटपर चढ़ाना चाहिये। पंच परमेष्ठीको अपने अंगोंमें स्थापन करना ही तिलक करनेका अभिप्राय है। ये तिलक पंचपरमेष्ठीके चिह्न हैं । अरहन्तोंको ललाटपर स्थापन करना चाहिये, सिद्धोंको हृदयमें, आचार्योको कण्ठमें, उपाध्यायों को दाहिनी भुजाओं और सर्व साधुओंको बायीं भुजाओंमें स्थापन करना चाहिये । यही तिलक करनेका हेतु । है । सो ही लिखा हैअर्हतां वा ललाटे च सिद्धानां हृदये तथा । आचार्याणां च श्रीकंठे पाठको दक्षिणे भुजे।। साधूनां वामभागे च पंचस्थानं प्रकीर्तितम् ।। इनके सिवाय कर्ण उवर आदि अन्य अंग उपांगोंमें भी तिलक करना कहा है । सो ही लिखा है जिनाहिचन्दनैः स्वस्य शरीरे लेपमाचरेत् । और भी लिया हैभुजयोर्भालदेशे वा कंठे हृदुदरेपि च । सर्वांगरचना कार्या विकारपरिवर्जिता ॥ इस प्रकार तिलकके चिह्न करने चाहिये। [१८१
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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