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________________ सागर १७२ ] । स्थापन सन्निधिकरण कर एक अर्घ बेना चाहिये फिर शांति पाठ तथा पुष्पांजलि क्षेपण करना चाहिये। फिर पूजाकी भूमिपर नीचे लिखे मन्त्र पढ़कर अलग-अलग अष्ट द्रव्य चढ़ाना चाहिये। ओं ह्रीं नीरजसे नमः जलं, ओं ह्रीं दर्पमथनाय नमः वर्भ, ( यहाँपर दाभ रखनी चाहिये।) ओं ह्रीं शीलगंधाय नमः गंध, ओं ह्रीं अक्षताय नमः अक्षतान, ओं हों विमलाय नमः पुष्पं, ओं हों परमसिद्धाय नमः नैवेद्यं, ओं ह्रीं ज्ञानोद्योताय नमः दीपं, ओं हों श्रुतधूपाय नमः धूपं, ओं ह्रीं अभीष्टफलदाय नमः फलं, इस प्रकार अष्ट द्रव्यसे पूजाको भूमिको पूजा करनी चाहिये फिर उस भूमिपर किसो ऊँचे आसन पर शांति चक्रका यंत्र स्थापन करना चाहिये। फिर उस यंत्रके बांई ओर नीचे भूमिपर अपने बैठनेके लिये देख शोधकर दाभका आसन बिछाना । चाहिये और उस समय "ओं ह्रीं अहं मां ठः ठः दर्भासन निक्षिपामि स्वाहा" यह मंत्र पढ़ना चाहिये। फिर "ओं हों अहं निःसही हुं फट् वर्भासने उपधिशामि स्वाहा" यह मंत्र पढ़कर उस काभके आसन पर बैठ जाना चाहिये। फिर "ओं हों अहं हय मौनस्थिताय अहं मौनजलं गृहामि स्वाहा" कह मंत्र पढ़कर हाथमें थोड़ा जल लेकर और मौनव्रत धारण करनेको प्रतिज्ञा कर जलधारा छोड़ देनी चाहिये । अर्थात् हाथका जल छोड़ देना चाहिये। यहाँसे आगे पूजा करनेवालेको मौन धारण करना चाहिये। फिर ओं ह्रीं भूः प्रपञ्चे भुवः प्रपद्ये स्वः। । प्रपद्ये चतुर्विशतितीर्थकुच्चरणशरणं प्रपद्ये मांगानि शोषयामि स्वाहा' यह मंत्र पढ़कर अपने वस्त्रके ठोकसे । (पल्लेसे ) अपना शरीर शुद्ध करना चाहिये । यह अंगशुद्धिका मंत्र है। फिर 'ओं ह्रीं अहं अमुजर असुजर भव तथा हस्तौ प्रक्षालयामि स्वाहा' यह मंत्र पढ़कर अपने दोनों हाथ धोने चाहिये । यह हायोंके शुद्ध करनेका मंत्र है। फिर 'ओं ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं हः नमोहंते भगवते श्रीमते पवित्रजलेन पात्रशुद्धि करोमि स्वाहा' यह मंत्र । पढ़कर गंध मिले हुए जलसे पूजाके सब पात्र शुद्ध करना चाहिये और फिर उन पात्रों में पूजाके अष्ट द्रव्य । स्थापन करना चाहिये । यह पात्र शुद्धि है। फिर 'ओं ह्रीं अहं शौं सौं वं मं हं सं तं पं झ्वों श्वों हं सं असि आ उ सा समस्सजलेन शुद्धपात्रे निक्षिप्तानि पुष्पादिपूजानव्याणि शोधयामि स्वाहा' यह मंत्र पढ़कर बामसे जल लेकर पूजाके सब द्रव्योंपर छींटा देना चाहिये और इस प्रकार सब द्रव्योंको शुद्ध कर लेना चाहिये । यह द्रव्य शुद्धिका मंत्र है। फिर 'ओं ही अहं आग्नेस्यां दिशि अस्मविद्यागुरुभ्यो बलिं ददामि स्वाहा' यह मंत्र है SATARNATAचार- चामान्यप
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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