SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सागर सुरणिरया पारनिरियं छम्मासवसिद्धिगे सगाउस्स । णरतिरया सव्वाउं तिभागसेसम्मि उक्कस्सं ॥८६ ।। भोगभुमा देवाउं छम्मासवसिट्ठगे य बंधति । इगिविगला गरतिरयं तेउद्गा सत्तगा तिरियं ॥८७॥ ___ १३२-चर्चा एकसौ बत्तीसवीं प्रश्न--पोशकारण, वशलाक्षणिक, रत्नत्रय तया पंचमी आदि अनेक प्रकारके व्रत जैनशास्त्रोंमें। बतलाये हैं। तथा उन व्रतोंको विधिपूर्वक पूर्ण कर लेनेपर प्रतिष्ठापूर्वक उद्यापन करनेकी आज्ञा व्रतकथाकोश आदि अनेक शास्त्रोंमें बतलाई है। परन्तु यदि किसी पुरुषसे उसके उद्यापनको विधि प्रतिष्ठापूर्वक न बन सके। तो यह उन बोको किस प्रकार कर सकता है ? समाधान-यदि उद्यापन करनेमें जिनप्रतिष्ठा न बन सके तो उसके अभाव में शांतिक कार्य करना चाहिये । अर्थात् शांतिचक्रका पाठ कर अभिषेकपूर्वक उस व्रतके उद्यापनकी विधि करनी चाहिये ऐसा मार्ग है । यही बात अनंतव्रतको उद्यापनको विधि अनंतवतको कथामें आचार्य पपनंदिने लिखी है। ___ अभावे तु प्रतिष्ठायाः शांतिक कार्यमंजसा।। तथा जिस पुरुषकी इतनी भी शक्ति न हो अर्थात् वह न तो शांतिक कर्म कर सके और न उद्यापनकी विधि हो कर सके तो उसे अपने व्रत विधिपूर्वक दूने समय तक करना चाहिये । जैसे सोलह कारण सोलह बाकीके जो सत्ताईस वर्ष रहे हैं उनके त्रिभागमें अर्थात् ९ वर्षको आय शेष रहनेपर ७२ वर्ष खोत जानेपर आयुका बंध करेगा। यदि यहाँ भी न कर सका तो उस बाफोके भी विभाग में अर्थात् तीन वर्ष आयु शेष रहनेपर परमतिके लिये आयुबंध करेगा। यदि वहाँ भी न कर सका तो एक वर्ष आयु शेष रहने पर आयु बंध करेगा। यदि यहाँ भी न हुआ तो चार महीने बा १२० दिन शेष रहने पर आयुबन्ध करेगा। यदि यहाँ भी न हुआ तो ४० दिन शेष रहनेपर, यदि वहाँ भी न हुआ तो इसका एक तिहाई १३-१ दिन आयु बाकी रहने पर आयुबंध करेगा। यदि यहाँ भो न हो सका तो इसको तिहाई ४-३ दिन बाको रहनेपर आयुबंध करेगा। इस प्रकार आठ विभागों में आयुबंध होता है यदि इन विभागोंमें बंध नहीं हुआ तो अन्तके अन्तर्मुहूर्त में होता है। देव, नारकी और भोगभूमियों के लिये अंतके छह महीने में इसी प्रकार साठविभाग कर लेने चाहिये।
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy