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पर्धासागर [१२]
ता-TAMATTARAमरम्परागत
चागी भद्दो चोक्खो उज्जुवकम्मो य खमदि बहुगं पि। साहुगुरुपूजणरदो लक्खणमेयं तु पम्मस्स ॥ ५१६ ॥ णय कुणइ पाखवायंणवि वाणिदाणं समोय सव्वेसिं। पत्थि य रायबोसा हो वि य सुक्कलेसस्स ॥ ५१७ ॥
१३१-चर्चा एकसौ इकतीसवीं प्रश्न--चारों ही गतिवाले जीवोंके वर्तमानको अपनी आयुमें अन्य गतिका आयुबंध किस-किस कालमें होता है और किस-किस गतिकी आयुका बंध होता है।
समाधान--देवगति और नरकगतिके जीवोंकी आयु जब अधिक से अधिक छह महीनेकी रह जातो है तब वे मनुष्य अथवा तिर्यमा लागुका बंध करते हैं। भावार्थ-देनोंकी आयु जब छह महीनेकी रह जाती है तब वे सम्यक्रव वा मिथ्यात्वके उवयसे होनेवाले अपने-अपने परिणामोंसे पृथ्वीकायिक, जलकायिक, वनस्पतिकायिक, मनुष्य और पशु इन पाँच प्रकारको गतियोंमेंसे किसी भी एक गतिके लिए आयुबंध कर लेते हैं। इसी प्रकार नारकी जीव मनष्य अथवा तिर्यचतिको आयका बंध करते हैं। सातवीं पच्चीके नारको जीव तियंचगतिका हो आय बंध करते हैं। सातवें नरकके जीरमनुष्य आयका बम्ध नहीं करते । मनष्य तथा तिबंध | पतिवाले जीव जब अपनी वर्तमान आयका तीसरा भाग रह जाता है तब वे अपने-अपने भावोंके अनुसार चारों ही गतियोंमेसे किसी एक गतिका आयु बंध कर सकते हैं। भोगभूमियोंके मनुष्य, तिर्यच भी अपनी माय छहमहोने बाकी रहने पर देवगतिका हो आयु बंध करते हैं। एकेंद्रिय, वोइंद्रिय, तेइंत्रिय, चौइंद्रिय जीव मनुष्य वा तिर्यचगतिको आयुका बंध करते हैं। इनमें भी तेजस्काय और वायुकायके एफेंद्रिय जीव तिबंध भायुका हो। बंध करते हैं । ये दोनों ही प्रकारके एफेंद्रिय जीव मनुष्यगतिकी आयुफा बंध नहीं कर सकते । ऐसा श्रीगोम्मटसारके कर्मकांडाधिकारमें लिखा है । १. यहाँपर इतना विशेष और समझ लेना चाहिये कि आयुबंध आयुके विभागो पड़ता है। और के त्रिभाम अधिकसे अधिक आठ लिये जाते हैं। जैसे किसी मनुष्यकी आयु ८१ इक्यासी वर्षकी है। वह अपनी आयुका एक त्रिभाग बाको रहनेपर अर्थाद दो। भाग वा ५४ चौमन वर्ष बीत जाने पर आनेके लिये आयुबंध करेगा। यदि कारणवश इस समय आयु बंधन कर सका तो