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सागर
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जो अरिष्ट ( अशुभ कर्मोंका उदय ) अथवा उपद्रयोंके दुखोंको सहन करने में दृढ़ हो, मुनियोंकी वा गुरुजनोंकी पूजादिक करने में प्रेम रखता उसे पच लेश्याधाला समझना चाहिये। जो एकांतका पक्षपाती न हो, दूसरेकी निन्दा करनेवाला न हो, समस्त जीवों में समानभाव रखता हो, इष्ट वा अनिष्ट पदार्थोंमें किसी प्रकारका राग था द्वेष न रखता हो, पुत्र, स्त्री आदि कुटुम्बियों में भी स्नेह न रखता हो, उसे शुक्ललेश्यावाला समझना चाहिये। इस प्रकार छहों लेइया वालोंके लक्षण गोम्मटसारके लेइया नामको मार्गणाके अधिकारमें लिखे हैं ।
चंडो ण मुचइ वेरं भंडणसीलो य धम्मदयरहिओ । दुट्टो ण य एदि वसं लक्खणमेयं तु किण्हस्स ॥ ५०६ ॥ मंद बुद्धिविणो विण्णाणी य विसयलोलो य । माणी मायी य तहा आलस्सो चेव भेज्जो य ।। ५१० ॥ दिचणबलो घणघणे होदि तिव्वण्णा य । लक्खणमेयं भणियं समासदो नीललेसस्स ॥ ५११ ॥ रूसइ दिइ अण्णे दूसइ बहुसो य सोयभयबहुलो । असुयइ परिभवइ परं पसंसये अप्पर्य बहुसो ॥ ५१२ ॥ णय पत्तियइ परं सो अप्पाणं यि वि परं पि मण्णंतो । थूसइ अभिस्थुवंतो ण य जाणइ हाणिवडिंड वा ॥ ५१३ ॥ मरणं एत्थेइ रणे देइ सुबहुगं पि थुव्वमाणो दु । ण गणइ कजाकज्जं लक्खणमेयं तु काउस्स ॥ ५१४ ॥ जाणइ कज्जाक सेयम सेयं च सव्वसमपासी । दयदारदो य मिदू लक्खणमेयं तु तेउस्स ॥ ५१५ ।।
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