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सागर १३६ 1
इगपुरिसे बत्तीसं देवी तज्जोगभजिददेवोधे। सगगुणगारेण गुणे पुरुसा महिला य देवेसु ॥ २७८ ॥
१२३-चर्चा एकसौ तेईसवीं प्रश्न-नरकगतिमें तथा देवगतिमें क्रोधादिक कषायोंके उदयकालकी जधन्य और उत्कृष्ट स्थिति कितनी है ?
समाधान-नरकके जीवोंके तथा देवोंके कषायकी जघन्य उत्कृष्टस्थिति एक अन्तर्महर्त है। भावार्थ। अन्तर्मुहर्तके बहुत भेद हैं इसलिए जघन्य और उत्कृष्टस्थिति दोनों ही अन्तर्मुहूर्तमें शामिल हैं। उनकी कषायें । । इससे अधिक नहीं ठहर सकतीं।
इसका भी विशेष वर्णन इस प्रकार है । नरकके जीवोंके जो लोभ कषाय है उसका उदयकाल सबसे कम है। उसे लोभके उदयकालसे उनको मायाका उदयकाल संख्यातगुणा है। मायासे मानका उदयकाल संख्यातगुणा है और मानसे क्रोधका उदयकाल संख्यातगुणा है । तथा देवोंके क्रोधका उदयकाल सबसे कम है। क्रोधसे मानका उदयकाल संख्यातगुणा है । मानसे मायाका उदयकाल संख्यातगुणा है और मायासे लोभका उदयकाल संख्यातगुणा है तथा नरकगतिके लोभका और देवगतिके क्रोधका काल भी अन्तर्मुहूर्त है और नरकगतिके क्रोष
तथा देवतिके लोभका काल भी अन्तर्मुहर्त है। जघन्य और उत्कृष्टपना समयको हानि वृद्धिसे है परन्तु दोनोंका काल हे अन्तर्मुहुः । सो ही गोम्मटसारके कषाय मार्गणाधिकारमें लिखा है--
पुह पुह कसायकालो णिरये अंतोमुत्तपरिमाणो ।
लोहादी संखगुणो देवेसु य कोहपहुदीदो ॥ २६६ ॥ इसके आगे मनुष्य तिर्यञ्चोंके कषायोंका वर्णन है सो विशेष यहाँसे जान लेना ।
१२४-चर्चा एकसौ चोवीसवीं प्रश्न-शास्त्रों में सात प्रकारके संयम बतलाये हैं उनमें से परिहारविशुद्धि संयमीको निरुक्ति, उत्पत्ति, स्थिति और इसको धारण करनेवालेको प्रवृत्तिका स्वरूप क्या है ?
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