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चर्चासागर [ १३५ ]
१२१-चर्चा एकसौ इक्कीसवीं प्रश्न--औवारिक, वैक्रियिक, आहारक, तेजस और कार्मणको उत्कृष्ट तथा जघन्य स्थिति किसनी है ?
समाधान--औदारिक शरीरको अघन्य स्थिति एक श्वासके अठारहवें भाग है। इसका वर्णन पहले लिख चुके हैं। वैक्रियिकको जघन्य स्थिति देव नारकियोंकी अपेक्षा स हजार वर्ष है। सो ही मोक्षशास्त्रमें लिखा हैदशवर्षसहस्त्राणि प्रथमायाम् । भवनेषु च । व्यंतराणां च ।
न्याय ४ सूत्र संख्या ३६-३७-३८1 तथा आहारकको जघन्य वा उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है जो ऊपर लिख चुके हैं। सैजसकी जघन्यस्थिति कार्मणको जघन्यस्थिति अन्य गसिके गमनकी अपेक्षा एक दो तीन समय है । सो ही मोक्षशास्त्र में लिखा है। एकं द्वौ त्रीन वानाहारकः ।
--अध्याय २ सूत्र सं० ३० इस प्रकार इनको जघन्यस्थिति बतलाई । अब आगे इन पांचों शारीरोंको उत्कृष्टस्थिति बतलाते हैं। । भोगभूमियोंको अपेक्षा औदारिकोंको बन्धरूप उत्कृष्टस्पिति तीन पल्य है। देव, नारकियोंको अपेक्षा वैक्रियिकको |
तेतीस सागर है। आहारकको अन्तर्मुहर्त है। तेजस शरीरको छयासठ सागर है। कार्माण शरीरको उत्कृष्टस्थिति सामान्य रीतिसे सत्तर कोडाकोगे सागर है तथा विशेष रीतिसे ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय और अन्तरायकी तीस कोडाकोडी सागर है नामगोत्रको बोस कोडाकोडी सागर है । सो हो गोम्मटसारमें लिखा है
पल्लतियं उवहीणे तेत्तीसंतोमुत्त उवहीणं । छावट्ठि कम्मट्ठिदि बंधुकस्सहिदी ताणं ॥ २५२ ।।
१२२-चर्चा एकसौ बाईसवीं प्रश्न-वेवोंकी जो देवांगनायें होती है उनकी उत्कृष्ट व जघन्य संख्या कितनी है ?
समाधान--वांगनाओंको जघन्य संख्या बत्तीस है। अर्थात् किसी भी देवके इससे कम देवांगनायें नहीं होती तथा इन्द्र के इससे असंख्यातगुणी बेवांगनायें होती हैं। सो ही गोम्मटसारके वेदमार्गणाषिकारमें
लिखा है