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________________ न्य पर्चासागर [१३०] होते हैं परन्तु निर्वृत्ति अपर्याप्तक और लग्धि अपर्याप्तक ये दो भेद और सुने जाते हैं वे किस-किस फर्मके उवयसे होते हैं और इनका स्वरूप क्या है ? ____ समाधान-निवृत्ति अपर्याप्त तो पर्याप्तक नाम कर्मके उदयका एक भेद है और लब्धिअपर्याप्तक अपर्याप्तक नाम कर्मके उदयका दूसरा भेद हैं । ये दोनों भेव और किसोके नहीं है। इनका स्वरूप इस प्रकार है-पर्याप्त नामकर्मके उदयसे एकेन्द्रिय जीवोंके चार पर्याप्ति होती हैं, दो M इन्द्रियके छः, तेइन्द्रियके सात, चौइन्द्रियके आठ, असेनोपंचेन्द्रियके नौ और सेनोपंचेन्द्रियके क्स पर्याप्ति होती में हैं । सो इनमेंसे जबतक शरीर पर्याप्ति पूर्ण न हो तबतक अर्थात् शरीर नामको पर्याप्ति पूर्ण होने तक जो । अन्तर्मुहूर्तका समय है उसमें से एक समय कम समय तक अपर्याप्त अवस्था रहती है। शरीर पर्याप्तिको पूर्णता को निवृत्ति कहते हैं जिनको पूर्णता होनेवाली है परन्तु अभी तक हुई नहीं है तबतक अर्थात् शरीर पर्याप्ति पूर्ण होने तक निर्वृत्यपर्याप्तक कहलाता है । इस प्रकार यह भेद पर्याप्तकका हो है । निर्वत्यपर्याप्तकका समय अन्त" मुहूर्त है । तथा लब्ध्यपर्याप्तक अपर्याप्त नामकर्मके उदयसे होते हैं । एकेन्द्रियसे आदि लेकर सेनीपंचेन्द्रिय तक के जीव जो अपनी शरीरपर्याप्ति भी पूर्ण न कर सकें एक प्रयासके अठारहवें भाग प्रमाण अन्तर्मुहर्तमें ही जो मर जाय ऐसे जीवोंको लब्ध्यपर्याप्तक कहते हैं । ये सब भेव गोम्मटसारके पर्याप्तिप्ररूपणाधिकारमें लिखे हैं। पज्जत्तस य उदये णियणियपज्जत्तिणिविदो होदि । जाव सरीरमपुण्णं णिविवत्ति अपुण्णगो ताव ॥ १२१॥ उदयेदु अपुण्णस्स य सगसगपज्जत्तियं ण णिवदि। अंत्तोमुत्तमरणं लद्धिअपज्जत्तगो सो दु॥ १२२ ॥ इनका उदाहरण इस प्रकार है। जैसे किसीने घर बनवाया। सो नींव भरकर जबतक वह घर पूरा नहीं होता तबतक अपर्याप्सफ कहते हैं तथा पूर्ण होनेपर पर्याप्तक कहलाता है। और नींव भरकर फिर में कामका पड़ा रसना कभी पूरा न होना सो लग्थ्यपर्याप्तक है। भावार्थ-जो एक श्वासमें अठारहबार जम्म मरण करते हैं उनको लब्ध्यपर्याप्तक मानना । तmaananaaaaaaanePEERUT
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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