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________________ ११६-चर्चा एकसौ सोलहवीं प्रश्न-ऊपर जो लाध्यपर्याप्सक और मिव॒स्यपर्याप्सक बतलाये हैं उन जीयोंक कौनसा गुणस्थान होता पर्चासागर । है और कौनसा नहीं होता? [ १३१ ] समाधान-लमध्यपर्याप्तक जोधके एक मिथ्यात्व गुणस्थान हो रहता है, मिथ्यात्वके सिवाय और कोई गुणस्थान नहीं होता । तथा निर्वृत्यपर्याप्तक जीवके मिथ्यात्व, सासादन, असंपत और प्रमत्त ये चार गुणI स्थान होते हैं । इनमें भी पहले और चौथे गुणस्थानसे मरकर यह जीव चारों गतियों में उत्पन्न हो सकता है। तथा सासारन गुणस्थानमें मरण करनेवाला जीव नरकको छोड़कर अन्य तीन गतियों में उत्पन्न होता है। इन तीनों गुणस्थानवाले जीवोंके जन्मके प्रथम समयसे लेकर औदारिक वा वैक्रियिक शरीर पर्याप्तिको पूर्णता न हो तब तक निर्वस्यपर्याप्तकपना है तथा छठ गुणस्थानवी मुनियोंके जबतक आहारक शरीरको पर्याप्ति पूर्ण न। हो तबसक निवृत्यपर्याप्तकपना है। इस प्रकार इनका स्वरूप गोम्मटसारके पर्याप्ति नामके प्ररूपणाधिकारमें लिखा है । यथा-- लद्धिअपुण्णं मिच्छे तत्थ वि विदिये चउत्थ छ? य । णिवित्तिअपज्जत्ती तत्थ वि सेसेसु पज्जत्ती ॥ १२७ ॥ १९७-चर्चा एकसौ सत्रहवीं । प्रश्न-चौदह मार्गणा और चौवह गुणस्थानोंमें सांतराके आठ भेद कौन-कौन हैं तथा उनका स्वरूप । संख्या और विधान क्या है ? समाधान-श्रीगोमटसारके मार्गणा नामके महाधिकारके प्रारंभमें लिखा है कि नाना जीवोंको अपेक्षा विवक्षित (जिसका कथन कर रहे हैं ) गुणस्थानको तथा मार्गणा स्थानको छोड़कर अन्य कोई गुणस्थान वा मार्गणास्थान प्राप्त हो जाय और फिर जबतक वही विवक्षित गुणस्थान वा मार्गणा स्थान प्राप्त न हो जाय तबतक वह उसका अन्तर कहा जाता है । उस अंतरको अंतरकाल संज्ञा है। जैसे इस लोकमें नाना जीवोंकी अपेक्षा उपशम सम्यग्दष्टी जीवोंका अन्तर सात दिन है। अर्थात तीनों लोकों में कोई जीव उपशम सम्यग्दृष्टी ।
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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