________________
सागर
१२९ ]
हो जाते हैं अनेक अन्तराय आ जाते हैं और उनके दर्शन होते ही नहीं। इसलिए जो अभव्य हैं जिनके नरकायु वातिशयुका बन्ध हो चुका है उनकी यात्रा नहीं होती । जो भव्य है परन्तु जिनके नरकायु वा तिर्यखायुका बन्ध हुआ है उनको भी यात्रा होना कठिन है। जिनके शुभ कर्मोंका उदय है ऐसे भव्यजीवोंके हो सम्मेद - freeकी यात्रा होती है। इसलिये जिसने इसकी यात्रा कर ली उसे आसन्न भव्य वा निकट भव्य ही समझना चाहिये ।
जो भव्यजीव सफेद वस्त्र पहन कर इसकी यात्रा करते हैं उनको शीघ्र मोक्ष प्राप्त होती है । जो पीले वस्त्र पहन कर इसकी यात्रा करते हैं उनके अनेक प्रकारके रोग मिट जाते हैं। जो हरे वस्त्र पहिन कर वन्दना करते हैं उनकी मानसिक पीड़ा और अनेक प्रकारके शोक सन्ताप मिट जाते हैं। जो भव्यजीव लाल रंगके वस्त्र पहन कर दर्शन करते हैं उनको अनेक प्रकारको लक्ष्मी प्राप्त होती है। इस प्रकार इसका विशेष फल है । इस प्रकार जो भव्यजीव भावसहित एक बार भी सम्मेदशिखरको यात्रा वन्दना करते हैं उन्हें ऊपर free अनुसार फल प्राप्त होता है। इसमें कोई किसी प्रकारका सन्देह नहीं। यह सब कथन लोहाचार्य विरfe शिखरविलास में कहा है। हमने यहाँ संक्षेपसे लिखा है विशेष वहांसे जान लेना । ऐसा समझकर भव्यatrist सम्मेद शिखरको यात्रा बन्दना बड़ी भक्तिसे करनी चाहिये । यही कल्याणस्वरूप है ।
प्रश्न -- जो नरकायुका बन्ध कर चुके हैं ऐसे रावण आदि भी तो बन्दनाके लिये गये हैं ?
उत्तर- रावण वहाँ गया तो सही परन्तु यात्रा करनेके लिये नहीं गया । मार्गमें जाते-जाते उस यनमें रहा और त्रिलोकमण्डन नामके हाथोको पकड़ कर उसकी क्रीड़ा करनेमें हो मग्न हो गया । उसको वश कर सबेरे ही वहाँसे घरको चल दिया उसको वहाँको यात्रा वन्वना आदि नहीं हुई। ऐसा पद्मपुराणमें लिखा है सो विचार कर लेना चाहिये जिन्होंने पहले नरकायु अथवा तिर्यचायुका बन्ध कर लिया है उनको सम्मेद - शिखरकी यात्रा नहीं होती ।
इस प्रकार ऊपर लिखे अनुसार सम्मेदशिखरको बीस टोकोंसे बीस तीर्थंकर और अनन्त मुनि मोक्ष पधारे हैं उनको हमारा बार-बार नमस्कार हो । तथा हमारा भी जन्म वहीं हो ।
११५ - चर्चा एकसौ पंद्रहवीं
प्रश्न- पर्याप्त नामकर्मके उदयसे तो पर्याप्तक होते हैं तथा अपर्याप्त नाम कर्मके उदयसे अपर्याप्तक
१७
[ १२२