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है तो दूसरे वेद पुराण अवतार और ऋषि आदिके वचनोंके आचरणाविका खंडन हो जाता है। यदि कोई । सबके ऊपर माना जाय तो भी परस्पर विरोध होनेसे दूसरेका अपमान होता है। ऐसी अवस्थामें क्या करना।
चाहिये यह बड़े संकटको बात है । इसलिये बिना स्याद्वाद वचनोंके, बिना तस्वोंके यथार्थ श्रद्धानके कुछ भी २४] कार्यकारी नहीं है ऐसा समझना चाहिये।
११३-चर्चा एकसौ चौदहवीं प्रश्न-श्री सम्मेदशिखरको यात्राका सबसे उत्कृष्ट फल क्या है ?
समाधान-राजा श्रेणिकने विपुलाचल पर्वत पर श्रीमहावीरस्वामीसे पूछा था कि हे भगवन् ! श्रीसम्मेदशिखरका माहात्म्य क्या है। तब भगवान्ने विध्यध्वनि द्वारा निरूपण किया कि हे श्रेणिक ! श्रीसम्मेदशिखर नामके पर्वतसे अजितनाथसे लेकर बीस तीर्थंकर मोक्ष पधारे हैं। उनके अलग-अलग कूट हैं उनके नाम इस प्रकार हैं। श्रीअजितनाथ सिद्धवरकूट मोक्ष मारे है। जी शंभरनाथ दत्तधवलकूटसे मोक्ष गये हैं। श्रीअभिनंदननाथ आनंदकूटसे मोक्ष पधारे हैं। श्री सुमतिनाथ अघिचलकूटसे मुक्त हुये हैं। श्रोपमप्रभ मोहन। कूटसे सिद्ध हुये हैं। श्रीसुपार्श्वनाथ प्रभासकूटसे मुक्त हुये हैं। श्रीचंद्रप्रभ भगवान ललितकूटसे मोक्ष पधारे हैं।।।
श्रीपुष्पदंत सुप्रभकूटसे सिद्ध हुये है। धीशीतलनाथ विद्युत्प्रभकूटसे मुक्त हुए हैं। श्रीश्रेयांसनाथ संवलकूटसे । (संकुलसे ) निर्वाण पधारे हैं श्रीविमलनाथ सुवीरकुलकूटसे मुक्त हुये हैं। श्रीअनंतनाथने स्वयंप्रभकूटसे मोक्ष पाई है। धर्मनाथने वत्तवरकूटसे निर्वाण प्राप्त किया है। श्रीशांतिनाथने कुन्दप्रभ वा प्रभासकूटसे सिद्धपद। प्राप्त किया है । कुयुनाथस्वामी ज्ञानधरकूटसे मोक्ष गये हैं। श्रीअरःनाथस्वामी नाटककूटसे मोक्ष पधारे हैं। श्रीमल्लिनाथ भगवान संबलकूटसे मुक्त हुये हैं। श्रीमुनिसुव्रत तीर्थकर निर्जरकूट से सिद्ध हुये हैं। श्रीनमिनाथदेव मित्रधरकूटसे मुक्त हुये हैं। श्रीपार्श्वनाथ भगवान् सुवर्णभद्रसे मोक्ष पधारे हैं। इस प्रकार बीस फूट हैं और उन कूटोंपरसे श्रीअजितनाथ आदि बीस तीर्थंकर मोक्ष पधारे हैं। उन कूटोंमें प्रत्येक फूटसे उन तीर्थंकरोंके मोक्ष जानेसे पहले ही अनंतानंत मुनिराज मोक्ष पधारे हैं इसलिये ये फूट परम पवित्र सिद्धक्षेत्र हैं। यह ह सम्मेदशिखरक्षेत्र बारह योजन प्रमाण है सो समस्त जीथोंके पापोंका नाश करनेवाला है। इसका दर्शन भव्य । जीवोंको हो होता है । अभव्यजीव वहाँ जा ही नहीं सकते। अभव्योंके जानेमें अनेक प्रकारके विधन आ उप