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________________ वर्षासागर १२३ ] अर्थात् - जिस घरमें लोग मूली पकाते हैं ( कंदमूल पकाते हैं ) वह घर श्मशानके समान है। उसमें पितर लोग कभी नहीं आते हैं जो लोग कंदमूलके साथ अन्न भोजन करते हैं उनकी शुद्धि सैकड़ों चांद्रायण व्रतोंसे भी नहीं हो सकती। कंदमूल भक्षण करनेमें ऐसा महापाप है। तथा जिसने बैंगन खा लिया उसने हालाहल विष खा लिया अथवा विष्ठा मांस आदि अभक्ष्य भक्षण कर लिया समझना चाहिये। क्योंकि वैगन के खानेसे यह अधम मनुष्य रौरव नरकमें 'जाता है। इस प्रकार ये लोग इनका निषेध भी करते जाते हैं और उनको अंगीकार भी करते जाते हैं। तथा रामचन्द्र और परशुराम दोनोंको अवतार मानते हैं और दोनोंका परस्पर युद्ध होना भी मानते । तथा हैं। ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनोंको एकसा ही मानते हैं परन्तु तीनोंके कार्य परस्पर भिन्न-भिन्न मानते परस्परमें युद्ध करना भी मानते हैं । मत्स्यावतारने तो वेद प्रगट किये तथा बुद्धावतार ने उसके मार्गका लोप किया । ऋषभावतारते वैराग्यको प्रवृत्ति की और कृष्णावतारने शृंगारमय नाना लीलायें कीं। कृष्णावतारने मर्यादाका भंग किया और रामावतार मर्यादापुरुषोत्तम हुए। बाल्मीकि रामायण में तथा पद्मपुराणमें रावणका वष रामने किया लिखा है। तथा अद्भुत रामायण में रावणका वध सीताने किया लिखा है। तथा इसी अद्भुत रामायण में सीताको रावणकी पुत्री बतलाया है। गीता में पहले तो क्रोधाविक पापोंके त्याग करनेका उपदेश दिया है और ज्ञानके बाद-उपवेशके बाब कौरवोंके साथ युद्ध करनेका उपवेश दिया है। वेदोंमें तो यज्ञमें पशुओंको हवन कर जीवोंकी हिंसाका निरूपण किया है और पुराणोंमें जीवघातका निषेध किया है । वेदांत में धातु, पाषाण आदिको मूर्त्तिके सेवन करनेका निषेष और चिदानंद चिरूपका चितवन करना लिखा है तथा पुराणोंमें उसी मूर्तिकी भक्ति पूजा आदिका प्रतिपादन किया है। शाक्तिक मतमें अवतारादिकोंको न्यूनता और शक्तिकी महानता दिखलाई है। रामके उपासकोंको कृष्णको उपासना नहीं करनी चाहिये, कृष्णके उपासकोंको रामकी उपासना नहीं करनी चाहिये। शिवके उपासकोंको नारायणकी उपासना नहीं करनी चाहिये और विष्णु उपासकोंको शिवको नहीं मानना चाहिये । इन सबमें परस्पर विरोध रखनेका उपदेश दिया है। इस प्रकार इन छहों शास्त्रोंमें परस्पर वचनोंकी विरुद्धता, चलनकी विरुद्धता और आचरणको विरुद्धता दिख लाई है और वह विरुद्धता प्रत्यक्ष दिखाई पड़ती है। सो संसारी जीव अपने कल्याणके लिये किस वचनपर, fee चलनपर और किस आचरणपर विश्वास रखें। यदि एक वेव, पुराण, वा अवतार पर विश्वास रखते [ १२
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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