________________
सागर [१२५
स्थित होते हैं। यदि कोई भव्य जीव महा पापी हो और इस गिरिराजके दर्शन कर ले तो उसके संसारका परिभ्रमण छूट जाता है वह अधिकसे अधिक उनचास भय तक परिभ्रमण कर सकता है। भावार्थ---गिरिराजके दर्शनका ऐसा माहात्म्य है कि इसके दर्शन करनेवाला महापापी भव्य जीव भी उनवास भव तक शुभ गतियोंमें जन्म लेकर मोक्ष प्राप्त कर लेता है । उस बारह योजन प्रमाण सिद्धक्षेत्रमें पृथ्वी, अप्, तेज, वायु, वनस्पतिकाधिक जीव तथा दो इप्रिय, सेन्द्रिय, इन्द्रिय, पसंतीचंद्रिय, पशु, पक्षी, मनुष्य आदि जो जीव उत्पन्न होते हैं ये सब भब्य ही होते हैं। वहां भव्य जीवोंका हो जन्मक्षेत्र है, अभव्य जीव वहाँपर जन्म धारण नहीं कर सकते । वहाँपर भव्य ही जन्म लेते हैं ऐसा नियम है। उस गिरिराजका ऐसा ही माहात्म्य है। तथा उसके दर्शन, वंदन, स्पर्शन करने आदिसे नरकगति और तियंचगति छूट जाती है। भावार्थ-यह जीव मरणकर फिर तिच और नरकगतिमें कभी जन्म नहीं लेता । वह या तो स्वर्गमें देव होता है अथवा मध्यम लोकमें उत्तम मनुष्य होता है। ऐसा नियम है ।
अब आगे एक-एक कूटसे तीर्थंकरोंके मोक्ष पधारनेके बाव कितने सुनिराज मोक्ष पधारे हैं सो बतलाते है । श्रीअजितनाथ के साथ एक हजार मुनि मोक्ष पधारे तथा उनके बाद उसी सिद्धवरकूटसे एक अरब चौरासी करोड़ पैंतालीस लाख मुनिराज मोक्ष पधारे। ऐसे उस कूटके दर्शन करनेसे बत्तीस करोड़ उपवास करनेका फल तथा कमकी निर्जरा होती है । इस कूटकी यात्रा सबसे पहले सगर नामके चक्रवर्ती ने चतुर्विध संघ सहित की थी। दूसरे सत्तलकूटसे श्रोसंभवनाथस्वामी एकहजार मुनियों सहित मोक्ष पधारे पीछे उसी फूटसे नौ कोठाको बहत्तर लाख सात हजार पाँचसे बियालीस मुनिराज मोक्ष पधारे। इस कूटके दर्शन करनेसे बियालीस लाख उपवास करनेका फल तथा कर्मोंकी निर्जरा होती हैं। इसकी यात्रा चतुविष संघ सहित मघवा चक्रवर्तीने को थी। श्रीअभिनंदनस्वामी आनंवकूटसे एक हजार मुनियों सहित मोक्ष पधारे। उसके बाव उसी कूटसे तिहत्तर फोडाकोडी सत्तर करोड़ सत्तर लाख सातसौ हजार पांच सौ विद्यालोस मुनिराज और मोक्ष पधारे | इस कूटके दर्शन करनेसे सोलह लाख उपवास करनेका फल और कर्मोंकी निर्जरा होती है । इसकी यात्रा संघ सहित सनत्कुमार चक्रवर्तीोंने की थी । श्रीसुमतिनाथ भगवान अविचल कूटसे एक हजार मुनियों सहित मोक्ष पधारे तथा उनके बाद उसी कूटसे एक अरब चौरासी करोड़ बारह लाख सात सौ इक्यासी मुनि
i