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________________ पर्चा ११ २७६ पुष्ठ संवा संध्या १५८ पहले पूजा में लिखा है कि पूजा करने पालेको भगवान यदि हम कोई महारम्भोंको छोड़कर थोड़ेसे आरम्भ वाले के चरण स्पर्शित गुष्पलाला कंमें धारण करती कार्य कर लेते हैं तो क्या हानि है २७२ चाहिए, प्रभुके चरण स्पर्शित दमका तिलक लगाना क्षीरकदंबकी कपा चाहिए वा सब शरीरमें आभूषणोंकी रचना करनी चाहिए इस पंचम कालमें जैन शास्त्रोंमें अनेक श्लोक मिला दिये तथा जिनपादार्चनके अक्षत ललाटमें लगाना चाहिए ऐसा हैं ऐसे कहनेवालेका समाधान लिखा है सो यह लिखना अत्यन्त विपरीत है इसमें प्रत्यक्ष हम लोग जल थोड़ा खरचते हैं तथा चढ़ाते नहीं, दीपक निर्माल्यका दोष आता है। निर्माल्यके समान और कोई जलाते नहीं, रात्रिपूजन करते नहीं, अच्छी बातें करते हैं, पाप नहीं इसलिए ऐसा कहना भी पाप है। भगवानके बुरी छोड़ देते हैं इसका समाधान २८१ चरणों में चन्दन लगाना चरणस्पर्शित पुष्पमाला पह- हमलोग जिनबिंबके चरणोंसे गन्धपुष्प हटाकर उसे नाना अत्यन्त विपरीत है इसलिए नहीं मानना निर्दोषकर पूजा करते हैं इसका समाधान २८२ । चाहिए अभिषेक करना जन्मकल्याणका कार्य है इसका यदि कोई तिलकन करे तो क्या दोष है २४२ समाषान २८५ भगवानके चरणोंपर गंध लगाना सरागातका कारण १६९ पूजामें वर्भ डाम दूध गोमय भस्मपिक सरसों आदि पदार्थ अनेक दोष उत्पन्न करने वाला है २४३ लिखे हैं सो ये पदार्थ तो अपवित्र हैं हिसा आदि अनेक भगवानके चरणों पर गन्ध लगाना कहाँ कहा है २४३ दोषों से भरे है इसलिये इमको पूजामें क्यों लेना हमारे भाव भगवानके चरणों पर चंदन लगानेके नहीं हैं चाहिये । तथा पूजाके अष्ट द्रव्य कौन कौन हैं ३०२ तो वैसे ही पूजा करनेमें क्या हानि है दाभके मैद ३०६ भगवानके चरणों पर चन्दन लगाने और पुष्प चढ़ानेका १७० पूजाकी विधि में यक्ष, यक्षिणो, असुरेंद्र, इन्द्र, दिकपाल, कथन महापापरूप है इसी प्रकार कोई-कोई रात्रि पूजन नवग्रह, क्षेत्रपाल आदिका स्थापन पूजन लिखा है सो करना कहते हैं सो महापापका कारण है इसे नहीं मानना यह तो जैनियोंके करने योग्य नहीं है यह तो मिथ्याचाहिए। दृष्टियोंका काम है। यह तो मिथ्यावृष्टियोंने मिला मनि बनमें हो रहते हैं मन्दिरोंमें नहीं इसका समाधान २५५ दिया है सम्यग्दृष्टि तो प्राणान्त होनेपर भी इनकी सचित्त पूजाका साधन पूजादिक नहीं करता इसका समाधान अभिषेकादिमें महारम्भ होता है इसका समाधान २५७ शास्त्रोंमें लिखा है तो हम क्या करें हम कुदेवोंको अचित्त द्रव्योंमें निरबा पूजा हो सकती है फिर क्यों नहीं मानते। नहीं करनी चाहिये। २१७ | ११ मंत्र शब्दका अर्थ क्या है अभिवेकका वर्णम शास्त्रोंमें कहा लिया है १८५२ पूजा करनेवाला कैसा होना चाहिये ARRAJanाचनाचामनाribe माहिए २१६ .
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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