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________________ २२] ?=====V7 — पृष्ठ संख्या ३१४ चर्चा संख्या चर्चा १७३ कैसे पुरुषको पूजा नहीं करनी चाहिये fife के मार्गको न जाननेके लिये पूजा करने का निषेध लिखा सो इसका क्या कारण है जनसंहिताका अर्थ क्या हैं १७४ यदि पूजा करनेके योग्य मनुष्य न मिले और अयोग्य मनुष्य पूजा कर ले तो क्या हानि है नित्यपूजा और प्रतिष्ठादि करनेवालों १७५ पूजा करते समय यदि किसीके हाथसे प्रतिमा पृथिवीपर गिर जाय तो उसका प्रायश्चित्त क्या है १७६ यदि पूजा करते समय मंत्रपूर्वक नैवेद्यादिक चढ़ाने में किसीसे वह नैवेद्यादि पृथिवी पर गिर जाय, नियत स्थानपर न चढ़ाया जा सके तो उसका क्या प्रायश्चित है। १७७ यदि कोई होन जातिका अस्पृश्य मनुष्य जिनबिन का स्पर्श कर लेवे दो उस मूर्तिका क्या करना चाहिये १७८ यदि स्पृश्य मनुष्य बिना स्नान किये जिनप्रतिमा का स्नान कर लेवे तो क्या करना चाहिये १७९ यदि किसीके हाथसे प्रतिमाका भंग हो जाय तो क्या करना चाहिये १८० यदि क्षेत्रपालादिक यक्षोंको पूजाका द्रव्य गिर जाय तो क्या करना चाहिये १८१ यदि जिनमंदिरमें हड्डी, मांस आदिके गिर जानेसे वह दूषित हो जाय अथवा उसमें चांडाल आदि अस्पृश्य मनुष्य घुस जांय तो क्या करना चाहिये १८२ भगवानको पूजा तीनों समय की जाती है यदि किसी समय वा दो समय वा एक दो चार आठ पंद्रह दिन एक महीने आदि तक प्रतिभाजीकी पूजन न हो तो क्या करना चाहिये । ३१६ ३१६ ३१७ ३१५ ६१८ ३१८ ३१९ ३१९ ३२० ३२० ३२० ३२१ चर्चा जो लोग इसके सिवाय और प्रायश्चित्त लेते हैं उसमें क्या हानि है चर्चा संख्या पृष्ठ संस्था १८३ यदि कोई मनुष्ध प्रायश्चित्तको विधि न करें तो क्या हो १८४ यदि किसी श्रावक-श्राविकासे अनाचार व हीनाचार बन जाय तो उसको क्या करना चाहिये । इस प्रायश्चिसमें गोदान बार ब्राह्मणोंको देना बत लाया है सो यह तो जैनधर्मसे बाह्य है ऐसा श्रद्धान मिथ्या है यदि सम्यग्दृष्टी ब्राह्मण न मिलें तो क्या करना चाहिये जिनमंदिरों में गोदान करना कहीं लिखा है। प्रायश्चित्त ग्रन्थों में शिर मुंडन क्यों लिखा है यह तो अन्य मतियों यहाँ है । १८५ मुनियोंके प्रायश्चितकी विधि क्या है १८६ अर्जिकाओके व्रताचरणमें कोई दोष लगे तो उसके प्रायश्चितकी विधि क्या है १८७ अर्जिका रजस्वला समय क्या करे १८८ जैनमत में गृहस्थोंके सूतक पातकके विचारकी विधि क्या है १८९ गोत्र वालेको सुतक किस प्रकार पालना चाहिये मुनिको अपने गुरु आदिके मरनेका सूतक किस प्रकार है तथा राजाके घर मृत्यु आदिका सूतक किस प्रकार है १९० गृहस्थोंके घर स्त्रियों रजस्वला होती हैं उनके योग्य अयोग्य अम्बरणकी विधि किस प्रकार है ३२२ ३२३ १२४ ३१० ३३१ ३३१ ३४१ ३४१ ३५८ ३५८ ३६० ३६२ ३६२ ३६३ SHRE [ २२
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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