________________
४]
सदलत्रयधारिणो यतिवरास्तासां समालंबनं ।
तत्पूजा जिनवाचि पूजनमतः साक्षाज्जिनः पूजितः॥ इससे सिद्ध होता है कि आचार्योको मानने में, उनको पूजा भक्ति करने और उनके वचनोंकी आज्ञा माननेमें कोई संदेह नहीं करना चाहिये। जो पुरुष आचार्योकी आज्ञा माननेमें संवेह करते हैं वे केवली भगवानका अविनय करते हैं।
१०७-चर्चा एक सौ सातवीं प्रश्न-भरत चक्रवर्तीने ब्राह्मणोंको स्थापना की थी सो उस समय कितने ब्राह्मणोंको स्थापना की थी अर्थात् उनको कितनी गिनती यो।
समाधान-भरत चक्रवर्तीने ब्रह्मकर्म विधिक समय पचतामको निधिसे ग्यारह ब्रह्मसूत्र वा यज्ञोपवीत निकाले और उन्हें पहनाकर ग्यारह ब्राह्मण स्थापन किये। भावार्थ-उस समय ग्यारह ब्राह्मण बनाये तथा पोछे अनुक्रमसे बढ़ते गये और बहुत हो गये सो ही आविपुराणके अड़तीसवे पर्वमें लिखा है। तेषां कृतानि चिह्नानि सूत्रः पद्माह्वयान्निधेः । उपात्तैर्ब्रह्मसूत्राहरेकायेकादशांतकैः ॥
इससे सिद्ध होता है कि जो लोग इस बातको नहीं मानते वे भ्रममें पड़े हुए हैं । शास्त्र में तो ग्यारहका ही प्रमाण मिलता है । इस प्रकार चतुर्थकालके प्रारम्भमें ब्राह्मण वर्णको उत्पत्ति हुई है।
प्रश्न--पांचों महा विदेह क्षेत्रोंमें ब्राह्मण हैं या नहीं। तथा वहाँपर कितने वर्ण हैं ? समाधान--विवेह क्षेत्रमें ब्राह्मण नहीं हैं वहाँपर क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र ये तीन ही वर्ण हैं । सो हो
सिद्धांतसारप्रवीपमें लिखा है।
। प्रजा वर्णप्रयोपेता जिनधर्मरताः शुभाः। व्रतशीलतपोष्टि भूषिता न द्विजाः क्वचित् ॥
१०८-चर्चा एकसौ आठवीं प्रवन-सामायिकके छह भेद सुने हैं सो वे कौन-कौनसे हैं ?